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________________ भगवतीसूत्रे च चारित्राचारित्रलब्धिः एकाकारा एकप्रकारा एव प्रज्ञप्ता, मूलगुणोत्तरगुणानां तद्भेदानाञ्चावित्रक्षणात् द्वितीयकषायक्षयोपशम जन्यपरिणाममात्रस्यैव विवक्षणात् चारित्राचारित्रलब्धेरेकाकारत्वं विज्ञेयम्, ' एवं जात्र उत्रभोगलद्धी गागारा पन्नत्ता' एवं चारित्राचारित्रलब्धिवदेव यावत्- दानलब्धिः लाभलब्धिः, भोगलब्धिः, उपभोगलब्धिः एकाकारा प्रज्ञप्ता, - दानलब्ध्यादीनामपि अवान्तरभेदानामविवक्षणात् एकाकारत्वम् एकप्रकारकत्वमव सेयमित्यर्थः । गौतमः पृच्छति - 'चीरियलद्धीणं भंते ! कविद्या पण्णत्ता ?" हे भदन्त ! वीर्यलब्धिः खलु कतिविधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाह - 'गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता' हे गौतम! 'एगागारा पण्णत्ता' देशविरति लब्धिरूप वह चारित्राarraoor एक प्रकारकी ही कही गई है। यहां पर उसके मूलगुण और उत्तरगुणरूप भेदोंकी और उन भेदोंके भी भेदोंकी विवक्षा नहीं की गई है । केवल द्वितीय कषाय जो अमत्याख्यान क्रोध मान माया और लोभ हैं उनके क्षयोपशमसे जन्य परिणाम मानकीही विवक्षा की गई है अतः इस चारित्राचारित्रलब्धि को एक प्रकारवाला कहा गया है । 'एवं जाब उबभोगलडी एगागारा पम्नत्ता' इसी तरह सेचारित्राचारित्रलब्धिकी तरह ही यावत्- दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि और उपभोगलब्धि ये लब्धियां भी एक एक प्रकारकीही कही गई है । यहां पर भी इनके अवान्तर भेदोंकी विवक्षा नहीं की गई है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ' वीरियलद्धिणं भंते ! ४१४ विहा पण्णता' हे भदन्त ! वीर्यलब्धि कितने प्रकारकी कही गई है ! इसके उत्तर में प्रभु कहेते हैं 'गोयमा' हे गौतम! 'तिविहा पण्णत्ता' પ્રકારની કહેલી છે. અહીંઆ તેના મૂળ ગુણુ અને ઉત્તર ગુણુરૂપ ભેદની અને તે ભેદ્યના પશુ ભેદ્યની વિવક્ષા કરી નથી કેવળ દ્વિતીય કષાય જે અપ્રત્યાખ્યાત ક્રોધ, માન, માયા અને લેાભ છે તેના ક્ષયેાપશમથી થવાવાળા પરિણામ માત્રની જ વિવક્ષા કરી છે. એટલા માટે તે શ્વિને એક પ્રકારની કહેલી છે S एवं जात्र उवभोगलद्धी एगागारा पण्णत्ता એજ રીતે ચારિત્ર્યાચારિત્ર્ય લબ્ધિની માફક ચાવત-દશન લબ્ધિ, લાભ લબ્ધિ, ભેગ ર્િ અને ઉપભાગલબ્ધિ એ લબ્ધિએ પણ એક પ્રકારની કહી છે. અહીં પણ તેના અવાન્તર ભેદ્યાની સમીક્ષા (વિવક્ષા) કરી નથી હવે ગૌતમ સ્વામી सब्धि विषे प्रश्न ४२तां आहे ' वीरियलद्धीणं भंते कइविहा पण्णत्ता ' हे भगवान! वीर्य सम्धि डेटला अभरनी है ? उत्तरमा अबु हे 'गोयमा ' हे गौतम! ,
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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