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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ स. ७ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् संपरायस्य कपायस्य लोभांशरूपस्योदयो भवति तत् सूक्ष्मस परायचारित्रं तस्य लब्धिः सूक्ष्मसंपरायचारित्रलब्धिः, तच्चारित्रं द्विविधं-विशुद्धयमानकं, संक्लिश्यमानकं च तत्र विशुद्धयमानचारित्रं क्षपकश्रेण्याम् उपशमश्रेण्याचारोहकस्य भवति, संक्लिश्यमानकच उपशमश्रेणितः अधःपतितस्य भवति ४, यत्र सर्वथा कषायोदयाभावो भवति तत् यथाख्यातचारित्रमुच्यते, येन प्रकारेण अषायितया आख्यात यथाख्यातमिति व्युत्पत्तेः, तच्चापि द्विविधम्उपशमकम्, सपकंच गौतमः पृच्छति -'चरित्ताचरित्तलद्धी णं भते ! कइविहा पण्णता?' हे भदन्त ! चारित्राचारित्रलब्धिः खलु देशविरतिलब्धिरूपा कतिविधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाह- ‘गोयमा! एगागारा पण्णत्ता' हे गौतम । कषाय-लोभांश का उदय होता है वह सूक्ष्म संपराय चारित्र है। इम चारित्र की प्राप्तिका नाम सूक्ष्म संपराय चारित्रलब्धि है। यह चारित्र दो प्रकार का होता है- एक विशुद्धयमानक और दूसरा संक्लिश्यमानक इनमें विशुद्धयमानकचारित्र क्षपकश्रेणी और उपशमश्रेणी में चढ़नेवालेको होता है। और संक्लिश्यमानकचारित्र उपशमश्रेणीसे नीचे गिरनेवाले के होता है। जिस चारित्र में कषाय के उदय का सर्वथा अभाव होता है वह यथाख्यातचारित्र है । यथायेन प्रकारेण अकषायितया आख्यातं तत् यथाख्यातं' ऐसी यथाख्यात की व्युत्पत्ति है। यह चारिन भी दो प्रकारका होता है एक उपशमक और दूसरा क्षपक । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'चरित्तचरित्तलद्धीणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! चारित्राचारित्रलब्धि कितने प्रकारकी कही गई हैं ? चारित्राचारित्रलब्धि का तात्पर्य देशचारित्रलब्धिसे है । इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' - થાય છે તે ચારિત્રનું નામ સૂક્રમ સંપરાય ચારિ લબ્ધિ છે આ ચારિત્ર્ય બે પ્રકારનું છે. ૧ વિશુદ્ધમાનક અને ૨ સંકલેશ્યમાનક તેમાં વિશુદ્ધમાનક ચારિત્ર્ય સંપકણો અને ઉપશમ શ્રેણીમાં ચડવાવાળાઓને હોય છે અને સ કલેશ્યમાન ચારિત્ર્ય ઉપરામથી નીચે જવાવાળા હોય છે જે ચારિમા કવાયના ઉદયનો સર્વથા मार डाय ते ययाभ्यात् यायि छ 'यथा-येन प्रकारेण अकषायितया आख्यातं तत् यथारख्यातं ' की ययाभ्यातनी व्युत्पत्तिले ते याविन्य पशु मे प्रा२नु छे. 1 842A मने २' १५४ प्रश्न :- चरित्ताचरित्तलद्धीणं भंते ! काविहा पण्णत्ता' HER ! यारियायारिय सालिसा नी सी छे ? (यारि-या यात्रिय सानु तात्पर्य हेश यारित्र्य सम्धिथा छे) :- ‘गोयमा' के गौतम! 'एगागारा पण्णत्ता' देश विरती ३५ ते यारन्यायारित्र्य मे
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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