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________________ ३७२ भगवतीसूत्रो यथा पृथिवीकायिका मिथ्यादृष्टित्वादज्ञानिनः प्रतिपादितास्तथा अज्ञानिना वक्तव्याः, ते च व्यज्ञाना एव बोभ्याः, किन्तु 'वेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं दो नागा, दो अन्नाणा नियमा' हीन्द्रिग-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियाणां टे जाने, द्वे अज्ञाने च नियमात् नियमतो भवतः, तथा च सासादनगुणस्थानकतया तेषु उत्पद्य मानलात, मासादनस्य गुणस्थानकस्य चोत्कृष्टतः पडावलिझामानत्वात् हे जाने नियमतस्तत्र लभ्येते. 'पंचिदिया जहा सइंदिया ' पञ्चेद्रियाः यथा सेन्द्रियाः भजनया चतुर्जानिनः व्यज्ञानि : पूर्व प्रदर्शितास्तथैव भजनया चतुज्ञानिनः, व्यज्ञानिनश्च द्रष्टव्याः गौतमः पृच्छति-'अणि दिया णं भंते ! जीना कि नाणी, दृष्टि होनेसे अज्ञानी प्रकट किये गये हैं, उसी प्रकारसे एकेन्द्रियजीव भी अज्ञानी होते हैं ऐसा जानना चाहिये । इनमें मत्यज्ञान और श्रुताज्ञान ये दो अज्ञानवाले ही होते हैं। किन्तु 'वेइंदियतेइंदिय चउरिंदियाणं दो नाणा दो अन्नाणा नियमा' दो इन्द्रियवालोंमें तीन इन्द्रियवालोंमें और चारइन्द्रियबालोंमें दो ज्ञान और दो अज्ञान नियमसे होते हैं। इनमें दो ज्ञान-मतिज्ञान और श्रुतज्ञान होनेका कारण यह है कि इन जीवों में दूसरा सासादन गुणस्थानका होना संभवित कहा गया है इस गुणस्थानका उत्कृष्टकाल ६ आवलिका प्रमाण होता है तबतक इनमें दो ज्ञान होते हैं और इसके सिवाय जीवोंके दो अज्ञान होते हैं। 'पंचिदिया जहा सइंदिया' पचेन्द्रियजीव जिस प्रकार से पहिले सेन्द्रिय जीब अजनाले चार ज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले प्रतिपादित किये गये हैं उसी प्रकारसे चार ज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले भजनासे होते हैं ऐसा जानना चाहिये । अव गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते દ્રષ્ટિ હોવાથી અજ્ઞાની કહ્યું છે તે રીતે એકેન્દ્રિય જીવોને પણ અજ્ઞાની સમજવા. તેઓ भय जान गने श्रु॥ज्ञानवा मेम में अज्ञानवा डाय छे 'बेइंदिय, तेइंदिय, चउदियाणं दो नाणा दो अन्नाणा नियमा' मेद्रियवाप, एयवा। मने या२ दियવાળા જીવોમાં જ્ઞાન અને બે અજ્ઞાન નિયમથી હોય છે તેઓમાં મતોજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન હોવાનું કારણ એ છે કે એ જીવમાં બીજું સાસાદન ગુણસ્થાનનું હોવું સંભવિત કહેલ છે ત્યાસુધી એ ગુણસ્થાનનો ઉત્કૃષ્ટથી ૬ છ આવલિકેના પ્રમાણથી હોય છે ત્યાસુધી तमनमा शान डाय छ भने त मिवायना योमा मे अज्ञान हेय छ 'पंचिंदिया जहा सेइंदिया। पत्येन्द्रिय ७१, रे प्राथा पा सेन्द्रिय सनाथी यार જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હોવાનું સમર્થન કર્યું છે એજ રીતે ચાર જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાવાળા ભજનાથી હાય છે.
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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