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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ मू. ५ शानभेदनिरूपणम् ३७३ अन्नाणी' हे भदन्त ! अनिन्द्रियाः खल्लु केवलिनः किं ज्ञानिनः, किंवा अज्ञानिनो भवन्ति ? भगवानाह-'जहा सिद्धा' २, हे गौतम ! यथा सिद्धाः केवलज्ञानलक्षणेकज्ञानिनः प्रतिपादितास्तथा अनिन्द्रियाः केवलिनाऽपि केवलज्ञानिनो बोध्याः। अथ चतुर्थकायद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-'सकाइया णं भंते ! जीवा कि नाणी, अन्नाणी ?' हे भदन्त ! सकायिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह-गोयमा ! पंच नाणाणि, तिन्नि अनाणाणि भयणाए' हे गौतम ! सकायिकानां पञ्च ज्ञानानि भवन्ति, त्रीणि अज्ञानानि भजेनया भवन्ति, तथाहि-कायेन औदारिकादिशरीरेण पृथिव्यादिपञ्चत्रसकायहैं ' अणिदियाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव अनिन्द्रिय हैं इन्द्रियके उपयोगसे रहित हैं वे ज्ञानी होते हैं या. अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'जहा सिद्धा' हे गौतम ! जिस प्रकारसे पहिले यह कहा गया है कि सिद्धजीव केवलज्ञानरूप एक ज्ञानले ज्ञानी होते हैं, उसी प्रकारले अनिन्द्रिय जीव भी-केवली भी केवल ज्ञानरूप एकज्ञानसे ज्ञानी होते हैं। ऐसा जानना चाहिये । ____ अब चतुर्थकायद्वारको आश्रित करके गौतम प्रभुसे पूछते हैं 'सकाइयाणं भंते ! जीवा किं नाणो अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव औदोरिक आदि शरीरसे अथवा पृथिवी आदि ६ काय इनमें से किसी एककायसे सहित होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंच नाणाणि, तिन्नि अन्नाणाई' भयणाए' सकायिकजीवोंको पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजनासे होते हैं क्योंकि औदारिक आदि गरीरसे तथा पृथिवी आदि प्रम-अणिदियाण भते जीवा किं नाणी अन्नाणी' भवन ! ७ मनिन्द्रिय છે એટલે કે ઈદ્રિયના ઉપયોગથી રહિત છે તેવા છો જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાની ? તેને उत्तर भापता प्रभु । 'जहा सिद्धार गौतम ! २ शत सिध्याना विषयमा આ પહેલાં કહ્યું છે સિદ્ધજીવ કેવળજ્ઞાનરૂપ એક જ્ઞાનવાળા હોય છે તે જ રીતે ઈદ્રિયવિનાના જીવ પણ એટલે કેવલી પણ–ચોથા કેવળજ્ઞાનરૂપ એક જ્ઞાનથી જ્ઞાની હોય છે हुवे यतुर्थ-याथा आयरन माश्रय शने गौतमस्वामी प्रभुने छछे : 'सकाइयाण भंते जीया कि नाणी अन्नाणी' मापन! २ १ मोहरि २मा शरीरथी અથવા પૃથ્વી આદિ છ કાય પૈકી કોઈ એક કાય યુકત હોય છે તેવા જીવ જ્ઞાની हेय छे , सजानी ? ते उत्तर मापता प्रभु ४ छ ‘गोंयमा' गौतम! 'पंच नाणाणि तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' साथि छवोभा पांय ज्ञान भने त्रा અજ્ઞાન ભજનાથી હેય છે કેમકે દારિક આદિ શરીરથી તથા પૃથ્વી આદિ પાંચ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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