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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ सू. ४ ज्ञानभेदनिरूपणम् ३१९ ate sofa - भाणि जाव सेतं केवलनाणे' एवं यथा राजमश्नीयसूत्रे ज्ञानानां भेदः प्रकारः प्रतिपादितस्तथैव इहापि भणितव्यः यावत् - तदेतत् केवलज्ञानम्, केवलज्ञानपर्यन्तमित्यर्थः । गौतमः पृच्छति - 'अन्नाणे णं भंते! कविहे पण्णत्ते ?' हे `भदन्त ! अज्ञानं खलु कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? विपरीतज्ञानमज्ञानम्, भगवानाह - 'गोमा ! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा - मइअण्णाणे, सुयअण्णाणे, विभंगनाणे' हे गौतम ! अज्ञानं त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा - मत्यज्ञानम्, श्रुताज्ञानम्, विभङ्गज्ञानम् विपरीतज्ञानम् विरुद्धा भङ्गा विकल्पा यस्मिन् तत् विभङ्गज्ञानम्, उक्त च " अवसेसिया मइ चिय, सम्मदिट्ठिस्स सा मइन्नाणं, म अन्नाणं मिच्छद्दिट्टिस्स सुपि एमेव ' ॥ १ ॥ A गौतमः पृच्छति - 'से किं तं गइअन्नाणे ? हे भदन्त ! अथ किं तत्इज्जे णाणाण भेदो तहेव इहवि भाणियच्वो जाव सेत्तं केवलनाणे' राजमनीय सूत्रमें जिस प्रकारसे ज्ञानोंका प्रकार कहा गया है उसी प्रकार से यहां पर भी वह कह लेना चाहिये यावत् 'से तं' केवलनाणे' इस पाठतक । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'अन्नाणेणं भंते ! कविहे पण्णत्ते' हे भदन्त ! अज्ञान कितने प्रकारका कहा गया है ? विपरीतज्ञानका नाम अज्ञान है। इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहे पम्नत्ते ' अज्ञान - विपरीतज्ञान तीन प्रकारका कहा गया है । ' तंजहा ' जो इस प्रकार से है मह अन्नाणे, सुयअन्नाणे, विभंगनाणे' मत्यज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान विरुद्ध विकल्प जिस ज्ञानमें होते हैं उसका नाम विभङ्ग ज्ञान है । - कहा भी है- ' अवसेसिया महचिय इत्यादि 6 - इसकी व्याख्या मुद्रित नंदीसूत्र में पृ. २९४ वैमें देखनी चाहिये । इह भाणिया जाव सेत्तं केवलनाणे' राप्रश्नीय सूत्रमा ने रीते ज्ञानना लेहे। हे छेतेन ते सही या पशु समन्न्वा यावत्- 'सेत्तं केवलनाणे' या पर्यत. - प्रश्न- 'अन्नाणं भंते कइविहे' पण्णत्ते' हे भगवान! अज्ञान हेटला अडारना अहेसां छे ? विपरीत ज्ञाननु नाम अज्ञान छे. ७. 'गोयमा' हे गौतम! तिविहे पण्णत्ते' अज्ञानत्रा प्राश्नु उडेल छे 'तं जहा ' ने मारीत 'मइ अन्नाणे, सुय अन्नाणे, विभंगनाणे' भत्यज्ञान, श्राज्ञान भने विलंगज्ञान विरुद्ध विप ने ज्ञानमा होय छे ते ज्ञाननु नाम विभंगज्ञान छे छुप े - 'अव से सियामइच्चिय इत्यादि' -मा गाथानी व्याख्या नहीसूत्रमा पृष्ट २८४ मा लेह सेवी अभ - 'से किं त मइ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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