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________________ }'. भगवती ३२० " कतिविधम् मत्यज्ञानं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह - ' मइ अन्नाणे चउच्चिहे पण्णत्ते ' 'तं जहा उग्गहे जाव धारणा' हे गौतम ! मत्यज्ञानं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा - अवग्रहः, यावत्-ईहा, अवयः धारणाच गौतमः पृच्छति - 'से कि तं उग्गहे ?' भदन्त ! अथ किं सः कतिविधः अवग्रहः ? भगवानाह - 'उग् पन्नत्ते, तं जहा - अत्थोग्गहे य ' वंजणोग्गहेय' हे गौतम ! मत्यज्ञानभेदरूपोऽवग्रहः द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा - अर्थावग्रस्थ, व्यव्जनावग्रहथ, 'अस्ति किंस्वित्' इत्येवं सामान्यावबोधः अर्थावग्रहः सकलविशेषनिरपेक्षाव्यपदेश्यार्थग्रहणमित्यर्थः तस्य सकलेन्द्रियार्थव्यापकत्वात्प्रथममुपन्यासः, तत्र येन अर्थः व्यज्यते प्रकटी अब गौतम प्रभुसे पूछते हैं 'से किं तं महअन्नाणे' हे भदन्त । मत्यज्ञान कितने प्रकारका कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं ' मइ अन्नाणे व पण्णत्ते' हे गौतम ! मत्यज्ञान चारप्रकारका कहा गया है 'जहा' जैसे 'उग्गहें जाव धारणा' अवग्रह ईहा, अवाय, धारणा | अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं से किं तं उग्गहे ' हे भदन्त ! अवग्रह कितने प्रकारका कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं है गौतम "उग दुविहे पण्णत्ते'' अवग्रह दो प्रकारका कहा गया है 'तंजहा' जैसे 'अत्थोग्गहे यं वंजणोग्ग हेय' अथवग्रह और व्यञ्ज-'नावग्रह 'अस्ति किंचित् ' ' इस तरह के सामान्य ज्ञानका नाम अर्थावग्रह अर्थात् सकलविशेष निरपेक्ष और अव्यपदेश्य ऐसा जो अर्थग्रहण वह अर्थावग्रह है तात्पर्य यह है कि अर्थावग्रहमें जो अर्थका अवग्रहरूप ज्ञान होता है वह सकलविशेष निरपेक्ष होता है यह काला है या पीला है इस प्रकारके विशेष धर्मकी अपेक्षासे अन्नाणे' हे भगवन ! 'भत्यज्ञान डेंटला प्रारनु छे ! . - 'म अन्नाणे चउत्रिहे पण्णत्ते' हे गातम! भत्यज्ञान यार अमरनुं उस छे.' 'तं'जहा' ने मारी - 'उग्गहे जात्र, धारणा,' अवथड ठंडा भवाय भने धारणा.' से किं त' उग्गहे " हे भगवन! वनड डेटला अारना था ? - हे गौतम 'उग्गहे दुविहे पण्णत्ते' अवग्रह में प्रारना छे छे तं जहा ' ?भे- - ' अत्थग्गहे य वैजणोग्गहे य ' अर्थावग्रह भने व्यन्नाव 'अस्ति किंचित' मे रीतनुं सामान्य ज्ञाननु नाम-અર્થાવગ્રહ છે અર્થાત સકલ વિશેષ નિરપેક્ષ અને અન્યપદેશ્ય એવા જે અર્થ ગ્રહણ છે તે અર્થાવગ્રહ છે કહેવાનો હેતુ એ છે કે અર્થાવગ્રહમાં જે અર્થના અવગ્રહરૂપ જ્ઞાનહાય છે તે સકલ વિશેષ નિરપેક્ષ હાય છે, એટલે કે આ કાળુ છુ, આ પીળું છે. ·
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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