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________________ ઢ Authe भगवतीसूत्रे . वस्थिताशेषभावावभासि ज्ञानमित्यर्थः । गौतमः पृच्छति - 'से किंत' आभिणिवोहियनाणे ?" हे भदन्त ! अथ किं तत् - कतिविधम् आभिनिवोधिकज्ञानमुच्यते ? 'भगवानाह - 'आभिणिवोहियनाणे चउविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! अभिनिबोधकज्ञानं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, 'तं जहा - उग्गहो, ईहा, अत्राओ, धारणा' तद्यथा - अवग्रहः, ईहा, अवायः, धारणाच, तत्र अनिर्देश्यसामान्यमात्ररूपार्थ विद्यमानार्थस्य विशेषधर्मविचारणा सदर्थविशेषालोचनम् ग्रहणम् अवग्रहः, ईहा, अर्थाविनिश्वयः - अवायः निश्चितार्थस्य स्मरणादि रूपेण कालान्तरेऽपि धारणं धारणा उच्यते इति भाव:, ' एवं जहा रायप्पसेणइज्जे गाणाणं भेदो शुद्ध होता है । तात्पर्य कहने का यह है कि जो ज्ञान संपूर्ण होता है उसी ज्ञानका नाम केवलज्ञान है । इसज्ञान में समस्त मूर्तिक और अमूर्ति पदार्थो का यथार्थ अवभास होता है । अब गौतम प्रभुसे ऐसो पूछते हैं 'से किं तं आभिणियोहियनाणे' हे भदन्त ! आभिनिबोधिक ज्ञान कितने प्रकारका कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं 'आभिणिबोहियनाणे चव्विहे पण्णत्ते' हे गौतम! अभिनिबोधिकज्ञान चार प्रकारका कहा गया है । 'तेजहा' जो इस प्रकारसे है ' उगहों, ईहा, अवाओ, धारणा' अवग्रह ईहा, अवाय और धारणा अनिर्देश्य ऐसे सामान्यमात्ररूप अर्थका ग्रहण होना इसका नाम अवग्रह है । विद्यमान अर्थके विशेषधर्मो की विचारणाका होना इसका नाम ईहा है । ईहित अर्थका निश्चय होना इसका नाम अवाय है और निश्चित हुए अर्थकी स्मरणादिरूपसे कालान्तर में भी धारणा बनी रहना इसका नाम धारणा है । ' एवं जहा रायप्पसेण 3 " એ કહેવાના હેતુ એ છે કે જે જ્ઞાન સંપુર્ણ હાય છે તે જ નનનું નામ કેવળજ્ઞાન છે. । આ જ્ઞાનમાં સંપૂર્ણ સૂતિક અને અમૂર્તિ'ક પદાર્થાના યથા રીતે આભાસ થાય છે. अश्- 'से किं त आभिणिवोहिय नाणं' हे भगवन मलिनिमोधिज्ञान डेटसा अठारनु ह्यु ं छे. उत्तर--' 'आभिणिवोहियनाणे चउबिहे 'पण्णत्ते' दे गौतम ! “आलिनिञोधिज्ञान यार प्रहार हे 'तं जहा' ने प्रभा छे. उग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा, अवग्रह, ईडी, अपाय भने धारणा ननिर्देशेस मेवा સામાન્ય માત્ર રૂપમનું ગ્રહણ થયું તેનું નામ અવગ્રહ છે. વિદ્યમાન અને વિશેષ. ધર્માંની વિચારણાનુ થવું તેનું નામ મહા છે.. ઇહિત અના નિશ્ચય થવા તેનું નામ • અવાય છે અને નિશ્ચિત થયેલ અની સ્મરણુ આદિ રૂપથી કાલાન્તરમાં પણ ધારણાનું । जनी रहेदु- तेनु नाभ धार छे.. 'एवं जहा रायप्पसेणइज्जे गाणार्ण भेदो तहेब 9.
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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