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________________ भगवती सूत्रे पोग्गलाणं समुदयसमिसमागमेणं ' अथ उलक्ष्णलक्ष्णिकादि प्रमाणान्तरं प्रतिपादयति- 'अनंताणं परमाणु अनन्तानां व्यावहारिकपरमाणु पुद्गलानाम् समुदयाः द्वयादिसमुदायाः तेषां समितयो = मीलनानि तासां समागमेन परिणामवशाद् एकीभवनेन या परिमाणमात्रा भवति - 'सा एगा उस सहिया इवा' सा एका उत्श्लक्ष्णलक्ष्णिका इत्युच्यते, अत्यन्तं श्लक्ष्णा श्लक्ष्णश्लक्ष्णा साएत्र श्लक्ष्णलक्ष्णिका स्वार्थे कमत्ययः । उत्- उत्कृष्टेन सा श्लक्ष्णलक्ष्णिकेति उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, 'सण्डसण्डियाडवा' 'श्लक्ष्णलक्ष्णिका' इति वा उच्यते 'उड्ढरे इवा' ' ऊर्ध्वरेणुः ऊर्ध्वाधस्तिर्यक् चलनधर्मोपलभ्यो यह परमाणु है और यह समस्त प्रमाणोंमें प्रथम प्रमाणरूपसे कारणभूत होता है । ७० अब सूत्रकार उत्श्लक्ष्णलक्ष्णिकादिका स्वरूप कहते हैं 'अनंताणं परमाणुपोग्गलाणं समुदयसमिह समागमेणं' अनन्त व्यावहारिक परमाणुपुद्गलोंके समुदाय आदि परमाणुओंके समुदायके मिलनेरूप समिति के समागम से परिणामवशात् एकीभवन से जो परिमाणमात्रा होती है 'सा' वह 'एगा ओसह सहियाह वा' एक उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका है । तथाच अत्यन्त श्लक्ष्ण ऐसी जो श्लक्ष्णश्लक्ष्णा है वही श्लक्ष्णश्लक्ष्णका है। इसीतरह उत्कृष्टतावाली जो श्लक्ष्णलक्ष्णिका है वही उत् श्लक्ष्णलक्ष्णिका है । यहांसे लेकर अङ्गुतक प्रमाणके दश भेद जो कहे गये हैं उन्हें ही प्रकट करनेके लिये सूत्रकार कहते हैं कि 'सहसहियाइ છેદન ભેદન થઈ શકતુ નથી. તે પરમાણુને સમસ્ત પ્રમાણેામાં સર્વપ્રથમ પ્રમાણુરૂપ કહ્યું છે. हवे सूत्र४२ उत्तमतक्ष्णु सहि माहिना २१३यनु निश्या ४२ - 'अणंताणं परमाणु पोग्लाणं समुदयस मिइसमागमेणं' अनंत व्यवहारि४ परमायु युद्दगाना સમુદાય ( આદિ પરમાણુઓના સમુદાય ) ના સચેાગ રૂપ સમિતિના સમાગમથી— परिणाभवशात् भेडीभवनथी- ने परिणाममात्रा भणे छे, 'सा एगाओ सहू सन्हियाइ वा' तेनु नाम ०४ 'सक्षिण' हे अत्यंत क्षण सेवी લક્ષ્ણલક્ષ્યા છે, તેને જ લઙ્ગલક્ષિણુકા કહે છે. આ રીતે ઉત્કૃષ્ટતાવાળો જે શ્લઙ્ગલક્ષિકા છે, તેનુ નામ જ ઉત્તલઙ્ગલણુિકા છે. ઉત્ શ્લષ્ણુલક્ષુિકાથી શરૂ કરીને આંગળ સુધીના પ્રમાણના જે દસ ભેદ કળા છે, તેનુ સ્વરૂપ સમજાવતા સત્રકાર अडे छे - 'सण्हसहियाइ वा, उड्ढरेणुइ वा, तसरेणुइ वा, रहरेणुइ बा,
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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