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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.१० सू.२ कालोदायिप्रबोधनिरूपणम् ८०७ स्वरूपविषयः समर्थः? सत्यरूपो चर्तते नु ? इति कालोदायिनं प्रति भगवतः कथनम् । कालोदायी पाह-'हंता, अत्थि' हे भदन्त ! हन्त सत्यम् अस्ति. भवत्मतिपादितास्तिकायस्वरूपविषयकः अस्माकं मिथः कथासमुल्लाप: संजातः । भगवानाह-'तं सच्चे णं एसमढे कालोदाई !' हे कालोदायिन् ! तत् सत्यो यथार्थः खलु अयमर्थः, 'अहं पंच अस्थिकायं पन्नवेमि' अहं पञ्च अस्तिकायान् प्रज्ञापयामि 'तं जहा-धम्मत्थिकायं, जाव-पोग्गलत्थिकार्य' तद्यथा-धर्मास्तिकायम् , यावत्-अधर्मास्तिकायम् , जीवास्तिकायम्, आकाशास्तिकायम्, पुद्गलास्तिकायम्, 'तत्थ ण अहं चत्तारि अस्थिकाए अजीवस्थिकाए समटे' कहो कालोदायिन ! यह अर्थ-मेरे द्वारा प्रतिपादित अस्तिकाय स्वरूप विषयक आप सब का वार्तालाप समर्थ है न ? अर्थात् आप लोगों का ऐसा वार्तालाप अस्तिकाय के विषय में हुआ था ऐसा जो मैं कह रहा हूं वह सत्य कह रहा हूंन ? ऐसा जब भगवान् कालोदायी से कहा-तब उस कालोदायीने प्रभु से कहा-'हंता अत्थि' हां, भदन्त ! जैसा आप कह रहे हैं वैसा ही वार्तालाप हम लोगों का आप के द्वारा प्रतिपादित अस्तिकाय के स्वरूप के विषय में परस्पर में उस समय हुआ था। तब भगवान् ने कहा-'तं सच्चेणं एसमठे कालोदाई ! हे कालोदायिन् ! अस्तिकाय का स्वरूप जैसा मैंने कहा है वह सत्य है. इसमें संदेह करने के लिये कुछ कारण नहीं है. मैंने 'पंच अस्थिकाय पनवेमि' पांच अस्तिकाय कहे हैं। वे पांच अस्तिकाय इस प्रकार से हैं-'धम्मत्थिकाय जाव पोग्गलत्थिकाय' धर्मास्तिकाय यावत् पुदगलास्तिकाय, यहां यावत् शब्द से 'अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, आकाशास्तिकाय' इन तीन अस्तिकायों का આપ લેકેની વચ્ચે આ પ્રકારને વાર્તાલાપ થયો હતો તે વાત ખરી છે કે નહીં ? सारे यी यु- 'हता, अस्थि , HEd ! मा५ ४ छ। तेव पातany અમારી વચ્ચે અસ્તિકાયના સ્વરૂપને વિષે થયે હતા ખરે. सारे महावीर प्रभुमे यु- 'तं सच्चेण एसमढे कालोदाई' હું કાલેદાયી! અસિતકાયના સ્વરૂપનું મેં જે પ્રતિપાદન કર્યું છે તે સત્ય જ છે. તેમાં આ દેહનો જરી પણ અવકાશ જ નથી મેં અસ્તિકાનુ આ પ્રમાણે પ્રતિપાદન કર્યું છે‘पच अस्थिकाय पनवेमि-तंजहा' में नीय प्रमाणे पाय मस्तिय था - 'धम्मस्थिकाय जाव पोग्गलथिकाय' (१) यस्तय, (२) मधमस्तिय, (3) જીવાસ્તિકાય, (૪) આકાશાસ્તિકાય અને (૫) પુદગલાસ્તિકાય !
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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