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________________ ३६८ भगवतीमु सामायिकम् ४, देशावकाशिक ५, पौषधोपवासः ६, अतिथिसंविभागः ७, अपश्चिममारणान्तिक--संलेखनाजोपणाऽऽराधनता ।। सू. २ ।। arar - प्रत्याख्यानाधिकारात् तद्भेदान् प्रतिपादयति- 'कइविहे णं भंते !" इत्यादि । करवि णं ते! पञ्चवखाणे पण्णत्ते ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! कतिविधं खलु प्रत्याख्यानं मसम् ? भगवानाह - 'विदे पञ्चचखाणे yours' हे गौतम ! द्विविधं प्रत्याख्यानं प्रज्ञप्तम्, 'तदेवाह - 'तं जहा ' तद्यथा मूलगुणपच्चकखाणेय, उत्तरगुणपच्चक्खाणे य' मूलगुणप्रत्याख्यानं च, मूलसामाह ४ देसावगा सियं ५, पोसहोववासो ६, अतिहिसंविभागो ७ अपच्छिममारणंतिय संदेहणा झूसणाऽऽराणया) दिग्वत १, उपभोगपरिभोग परिमाण २, अनर्थदण्डविरमण ३, सामायिक ४, देशावकाशिक ५, पौषधोपवास ६ अतिथिसंविभाग ७ और अपश्चिम मारणान्तिक-संलेखना जोपणाऽऽराधनता । टीका - प्रत्याख्यान का अधिकार चल रहा है, इसलिये सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा उसके भेदों का प्रतिपादन किया है- इस बात को गौतमने प्रभु से इस प्रकार से पूछा है कि 'कविणं भंते ! पच्च'क्खाणे पण्णत्ते' हे भदन्त ! प्रत्याख्यान कितने प्रकारका कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोधमा ! हे गौतम! 'दुविहे पच्चखाणे पण्णत्ते' प्रत्याख्यान दो प्रकारका कहा गया है । (तं जहा) वे उसके दो प्रकार इस तरहसे है (मूलगुणपच्चक्खाणे य उत्तरगुण पच्चक्खाणेय' एक मूलगुणप्रत्याख्यान और दूसरा उत्तरगुण सामाइयं, देसावगासियं, पोसहोववासो, अतिहिसंविभागो, अपच्छिममारणंतिय संलेहणा झूसणाऽऽराहणाया ) ( 1 ) द्विगव्रत, (२) उपलोगयरिलोग परिभालु, (3) अनर्थ है उ विरेभणु, (४) सामायिक, (५) हेसावाशिक, (६) पोषधोपवास, (७) अतिथि સ’વિભાગ અને અપશ્ચિમ મારણાન્તિક–સ લેખના જોષણા આરાધનતા, ટીકાç~ પ્રત્યાખ્યાનનું વકતવ્ય ચાલી રહ્યુ છે તેથી સૂત્રકારે આ સૂત્રદ્રારા પ્રત્યાખ્યાનના ભેદોનુ પ્રતિપાદન કર્યું છે— આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી भहावीर अभुने २मा अभा] अश्न पूछे छे - 'कइविणं भंते ! पच्चक्खाणे पण्णत्ते ? હે ભદન્ત! પ્રત્યાખ્યાન કેટલા પ્રકારના હાય છે? તેને જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ उडे - 'दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते' हे गौतम! अत्याध्यानना मे अारमा छे, ‘तं जहा' ते श्राशे नीचे प्रभा हे- 'मूलगुणपच्चक्खाणे य, उत्तरगुण पच्चव
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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