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________________ ३६७ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. २ सु. २ प्रत्याख्यानस्वरूपनिरूपणम् प्रत्याख्यानं च । सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानं खलु भदन्त । कतिविधं मज्ञतम् ? गौतम ! दशविधं प्रज्ञप्तम् । तद्यथा - अनागतम् १ अतिक्रान्तं २ कोटिसहित ३, 'नियन्त्रितं ४, चैत्र साकारम् ५, अनाकारम् ६, परिमाणकृतम् ७, निरवशेषम् ८, ॥१॥ सङ्केत ९, चैव अद्धा, प्रत्याख्यानं १० भवेद् दशधा ।" देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानं खलु भदन्त ! कतिविधं ज्ञप्तम् ? गौतम ! सप्तविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा - दिग्वतम् १, उपभोगपरिभोगपरिमाणम् २, अनर्थदण्डविरमणम् ३, प्रत्याख्यान | (सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते) हे भदन्त ! सर्वोत्तर गुण प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम! दसविहे पण्णत्ते) सर्वोत्तर गुण प्रत्याख्यान दश प्रकार का कहा गया । (त जहा ) वे उसके दश प्रकार ऐसे हैं(अणागमक्कतं, कोडीसहियं नियंटियं चेव, सागारमणागारं परिमाणकड निरवसे ||१|| ) अनागत १, अतिक्रान्त २, कोटिसहित ३, नियन्त्रित ४ साकार ५ अनाकार ६ कृतपरिमाण ७ निरवशेष ८ (साकेयं चैव अद्धाए, पच्चक्खाणं भवे दसहा) संकेत ९, अद्धाप्रत्याख्यान १० (देसुत्तरगुण पच्चक्खाणे णं भंते ! कहविहे पण्णत्ते) हे भदन्त ! देशोत्तरगुण प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा है ? ( गोयमा) हे गौतम! ( सत्तविहे पण्णत्ते) देशोत्तर गुण प्रत्याख्यान सात प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) वह इस प्रकार से हैं(दिसिव्यं १, उवभोगपरिभोगपरिमाणं २, अण्णत्थदंडवेरमणं ३, य, देनुत्तरगुणपच्चक्खाणे य) (१) सर्वोत्तर अत्याच्यान भने ( २ ) शीत्तरगुगु अत्याध्यान. ( सव्युत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कइ विहे पण्णत्ते ? ) डे लहन्त | सर्वोत्तरगुणु अन्यायानना डेंटला अअर ४ छे ? ( गोयमा ! दस विदे पण्णत्ते ) हे गौतम! सर्वोत्तरगुणु अत्याध्यानना इस अक्षर उद्या (तँ जहा ) ते इस प्रकाश मा प्रभाणे - ( अणागयमइकतं, कोडीसहिय नियंटियं चेव, सागारमणागारं परिमाणकड निरवसेसं) (१) अनागत, (२) अति अन्त, (3) मेटिसहित, (४) नियंत्रित, (५) साडार, (६) अनार, (७) हृतपरिलाभ, (८) निश्वशेष, (साकेयंचेत्र अद्धाए, पंच्चक्खाणं भवे दुसहा) (2) सद्वैत भने (१०) अद्धा प्रत्याध्यान. ( देसुत्तरगुणपच्च्चक्खाणे णं भंते ! कवि पण्णत्ते ? ) डे लक्ष्न्त ! देशोत्तर अत्याध्यानना नीचे प्रभासात अमर झा छे ? - (गोयमा ! ) हे गौतम! (सत्तविहे पण्णत्ते- तं जहा) देशोत्तर अत्याच्याना नीचे प्रमाणे सात अक्षर या छे- ( दिसिव्वयं, उवभोगपरिभोगपरिमाणं, अण्णत्थदंड वेरमण, 1
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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