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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ६ उ. ९ सू. २ महर्द्धिकदेवविकुर्वणास्वरूपनिरूपणम् १७७ पुदगलेन शुक्ल शुक्लवर्णपुद्गलः परिणमयितव्यः, तथा कृष्णपुद्गलस्य नीललोहित - हारिद्र शुक्लपुलतया, नीलपुद्गलस्य लोहित-हारिद्र-शुक्लपुद्गलतया, लोहितस्य हारिद्र - शुक्लतया, हाद्रिपुद्गलस्य शुक्लपुद्गलतया च परिणमनद्वारा कृष्ण - नील- लोहित - हारिद्र शुक्लानां पञ्चानां वर्णानां दर्शाद्विकसम्मेलनात् दश आलापकाः अवसेयाः । ' तं एवं एयाए परिवाडीए गंध-रसफास० कक्खडफास पोग्गलं मउय - फासपोग्गलत्ताए', तदेवमनया परिपाटया कृष्णपुद्गलादीनां नीलपुद्गलादितया परिणामरीत्या गन्ध-रस- स्पर्शानामपि परिणामो वक्तव्यः यावत् कर्कश स्पर्शपुद्गलं मृदुकस्पर्शपुद्गलतया देवः बाह्यान वह देव परिणमा देता है । तथा - कृष्णपुद्गल को नील, लोहित, हारिद्र और शुक्लपुद्गल के रूप में, नील पुद्गलल को लोहितपुद्गल के रूप में, हारिद्रपुद्गल के रूप में शुक्लपुद्गल के रूप में, तथा हारिद्रपुद्गल को शुक्लपुद्गल के रूप में परिणमा देता है । इस तरह से पाँच वर्णों के ये दश विकल्प रूप आलापक हुए हैं । 'तं एवं एयाए परिवाडीए गध, रस, फास० कक्खडफास पोग्गलं मउयफास पोग्गलत्ताए' गंध के विषय में सुरभिदुरभिरूप गन्ध द्वयका एक प्रकार का आलापक होता है - वह इस प्रकार से है - सुगंध पुद्गल को दुर्गंध - मुद्गल के रूप में अथवा दुर्गंधपुद्गल को सुगंध पुद्गल के रूप में परिणमाना पाँच रस के दश विकल्परूप अलापक इस प्रकार से हैतिक्त रस का कटूरस के रूपमें परिणमाना, तिक्तरस को कषायरस के रूप में, आम्लरस के रूप में, मधुररस के रूप में परिणमाना, कटुरस પુદ્ગલરૂપે પરિણુમાવે છે. આ રીતે કૃષ્ણ પુદ્ગલને નીલ, લાલ, પીળા અને સફેદ પુદ્ગલરૂપે, નીલપુદ્ગલને લાલ, પીળા, અને સફેદ પુદ્ગલરૂપે, લાલપુદ્ગલને પીળા પુદ્ગલરૂપે અને સફેદ પુદ્ગલરૂપે અને પીળા પુદ્ગલને સફેદ પુદ્ગલરૂપે તે દેવ પરિણુમાવી નાખે છે. આ રીતે પાચ વર્ણાને અનુલક્ષીને ઉપયુ`કત ૧૦ વિકલ્પ (ભગ) રૂપ આલાપક मन्या छे. 'तं एवं एयाए परिवाडीए गंध, रस, फास. कक्ख फास पोंगल मउय - फास - पोग्गलत्ताए 'गंधना विषयभां सुगंध दुर्गधश्य गधद्वयना (मे अारनी ગધના) એક પ્રકારનાં આલાપક થાય છે, તે આલાપાક આ પ્રમાણે છે – તે દેવ સુગ ંધયુકત પુદ્ગલને દુગંધયુકત પુદ્ગલરૂપે અને દુર્ગં ધયુક્ત પુદ્ગલને સુગંધયુકત પુદ્ગલરૂપે પરિણુમાવે છે' પાચ રસના ૧૦ વિકલ્પરૂષ આલાપક આ પ્રમાણે અને છે– (१) ते हेव तित (तीजा) रसने उडवा २ ३ये परिभावे छे, (२) तिम्त રસને કષાય (તુરા) રસરૂપે પરિણમાવે છે, (૩) તિકત રસને ખાટા રસ રૂપે પરિણમવે
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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