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________________ r ___ भगवतीने ___ एवं णीलएणं जाव-मुकिल्ल' एवं तथैव नीलकेन नीलवर्णपुद्गलेन यावत्शुक्र शुक्लवर्णपुद्गलः परिणमयितव्यः, यावत्करणात्-नीलवर्णपुद्गलेन लोहितवर्णपुद्गलः, हारिद्रवर्णपुद्गलः, शुक्लवर्णपुद्गलश्च परिणमयितव्यः इतिवोध्यम् , ' एवं लोहियपोग्गलं जाव-मुकिल्लचाए ' एवं तथैव लोहितपुद्गलं यावत्-शुक्लतया शुक्लवर्णपुद्गलयता वाह्यान् पुद्गलान् पर्यादाय देवः परिणामयति यावत्करणात्-लोहितपुद्गलं हारिद्रवर्णपुद्गलतया परिणमयति' इति संग्राह्यम् , 'एवं हालिद्दएणं सुकिल्लं' एवं तथैव हारिद्रकेण हारिद्रवर्णदेता है बदल देता है । 'एवं णीकएणं जाव सुक्किल्ल' इसी तरह से वह देव नीलपुद्गलके साथ यावत् शुक्लवर्णवाले पुद्गलका परिणमन करा देता है। यहां 'यावत्' शब्द से ऐसा पाठ ग्रहण किया गया है। कि नील वर्णवाले पुदगल के साथ लोहितवर्णवाला पुद्गल, हारिद्रवर्णवाला पुद्गल और शुक्लवर्णवाला पुद्गल परिणमायितव्य है- अर्थात् वह देव नीलवर्णवाले पुद्गल को लोहितवर्णवाले पुद्गल के रूप में, हारिद्रवर्णवाले पुद्गल के रूप में और शुक्लवर्णवाले पुद्गल के रूप में परिणमा देता है । 'एवं लोहिय पोग्गल जाव सुकिल्लत्ताए' इसी तरह से लोहित पुद्गल को यावत् शुक्लवर्णवाले पुद्लग के रूपमें वह देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमा देता है। यहां 'यावत्' शब्द से 'लोहित पुद्गलम्लोहितपुद्गल को (हारिद्रपुदलतया) हरिद्रवर्णवाले पुद्गल के रूप में परिणमा देता है। यह पाठ गृहीत हुआ है, "एवं हालिइएणं सुकिल्लं' इसी तरह से हरिद्रवर्णवाले पुदगल के साथ शुक्लवर्णवाले पुद्गलको भुगत३५ परिशुभाव छ-परिवर्तित ४श नामेछ-मदी नामेछ. 'एणं णीलएणंजाव सुकिल्लं' मे प्रमाणे ते देव नासपना पुगसन स पय-तना पवार પુદગલરૂપે પરિણમાવી શકે છે. આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે – તે દેવ બાહ્ય પુદગલોને ગ્રહણું કરીને નીલવર્ણવાળા પુદગલને લાલવર્ણવાળા પુદ્ગલરૂપે, પીળા पायुहात३२ तथा स३६ पयुवामा ५ शुभावी हे छे., एवं लोहिय पोग्गलं जाच मुक्किल्लत्ताए। मेरी प्रमाणे ते है and पुगतने शुभस पर्य-तना વર્ણવાળા પુદ્ગલરૂપે પરિણુમાવે છે. એટલે કે તે લાલવર્ણના પગલને પીળાવર્ણના Y३ तथा सविना ५१३२ परिशुभाव छ 'एवं हालिइएणं सुक्किलं' એજ પ્રમાણે બાહ્ય પુદગલોને ગ્રહણ કરીને તે દેવ પીળાવર્ણના પુગલને સફેદવર્ણવાળા
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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