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________________ - १८६ भगवतीसी स्वाभाविकः ? भगवानाह-गोयमा ! पयोगसावि वीससावि ' हे गौतम ! वस्त्रस्य पुद्गलोपचयः प्रयोगेणापि - पुरुपादिव्यापारेगापि, विनमयाऽपि स्वभावेनापि । ततो गौतमः पृच्छति-'जहाणं भंते ! त्यस्स णं पोग्गलोवचए पयोगसा वि, वीससा वि' हे भदन्त ! यथा खलु वस्त्रस्य पुद्गलोपचयः प्रयोगे. णापि,-पुरुषव्यापारेणापि, विससयाऽपि-स्वभावेनापि, 'तहा गं जीवाणं कम्मोवचए कि पयोगसा, वीससा ? ' तथा खलु जीवानां कर्मोपचयः किम् प्रयोगेण पुरुषादिव्यापारेणापि विस्त्रसया स्वभावेनापि भवति ? भगवानाह-'गोयमा । पयोगसा, णो वोससा । ' हे गौतम ! जीवानां कर्म पुद्गलोपचयः प्रयोगेण पुरुहै अर्थात् पुरुषव्यापार के विना ही होता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (पओगसा वि वीससा वि) वस्त्र के पुद्गलों का जो उपचय होता है वह पुरुषादि के व्यापार से भी होता है और पुरुषादि के व्यापार के विना भी होता है, अब गौतमस्वामी पुनः इसी विषय को लेकर प्रभु से प्रश्न करते हैं कि-(जहा णं भंते ! वत्थस्ल णं पोग्गलोयचयं पयोगसा वि वीससावि) हे भदन्त ! जिस तरह वहा के पुद्गलों का उपचय प्रयोग से भी होता है और प्रयोग के विना-स्वाभाविक रीति से भी होता है (तहाणं जीवाणं कम्मोवचए किं पयोगसा वीससा) उसी तरह से क्या जीवों के जो कर्म का उपचय होता है वह क्या प्रयोग से भी होता है ? या प्रयोग के विना भी होता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि -(गोथमा) गौतम! (पयोगसा णो वीससा) जीवों के जो कर्म का तन वाम माता मडावीर प्रभु ४ छ-(गोरमा! पोगसा वि वीससा वि) है गौतम ! पवन सोना २ रुपयय थाय छे ते प्रयोगथा (પુરુષાદિની પ્રવૃત્તિથી) પણ થાય છે અને સવાભાવિક રીતે પણ થાય છે, એટલે કે પુરુષાદિની પ્રવૃત્તિ વિના પણ થાય છે. ગૌતમ સ્વામી નાં પુપચયના વિષયમાં એ પ્રશ્ન કરે છે કે (जहाणं भजे ! वत्थस्स णं पोग्गलोचयं पभोगसा वि वीससा वि) महन्त ! જેવી રીતે વસ્ત્રનાં પુલેને ઉપચય પ્રયોગથી પણ થાય છે અને પ્રયોગ વિના सामावि शत पर थाय छे, (तहाणं जीवाणं कम्मोवचए कि पयोगसा वीनसा?) से प्रभारी शुलवानां पुराना उप-यय प्रयोगथी ५ थाय છે અને સ્વાભાવિક રીતે (પ્રાગ વિના) પણ થાય છે ? तना पाण माता मडावीर प्रभु ४ छ-(गोयमा!) गीतम! (पओगसा णो वीससा) ला भनी २५यय थाय छ त प्रयोगयी
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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