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________________ भगवतीस्त्र अथवा पृथकत्वम् आयुधानां बहुलं, बहुत्वेन रूपेण आयुधविशेषान् विकुर्वित विकुर्वणया निष्पादयितुं प्रभवः समर्थाः ? ' जहा जीवाभिगमे आलावगो तहा नेयम्वो, जाव-दुरहियासे ' यथा जीवाभिगमसूत्रो आलापकः अभिलापः तथा अत्रापि ज्ञातव्यः तरयावधिमाह-यावत्-दुरध्यासाम् ' तदालापकस्वरूपं यथा'गोयमा ! एगतंपि पभू विउवित्तए, पुहुत्तं पि पभू विउवित्तए, एगत्तं विउच्च माणा एगं महं मोग्गररूवं वा, मुसुंढि ख्वाणि वा' इत्यादि ।। विकुर्वणा कर सकता है-अर्थात्-विक्रिया शक्ति द्वारा ही आयुध रूप से अपने शरीर को परिणमा सकता है ? या अनेक आयुधरूप से अपने आप को परिणमा सकता है ? इस विषय में उत्तर देते हुए प्रभु कहते है कि हे गौतम ! 'जहा जीवाभिगमे आलावगो तहा नेयव्यो जाव दुरहियासे' इस सूत्रपाठ द्वारा इस विषय में जैसा आलापक-अभिलाप-जीवाभिगम सूत्र में कहा है-पैसा ही आलापक यहां पर भी जानना चाहिये और वह "दुरध्यास" इस पद तक ही ग्रहण करना चाहिये । वह आलापक इस प्रकाले है-" गोयमो | एगत्तं पि पहु विउवित्तए पुहुत्तं पि पभू विउवित्तए, एगत्तं विउव्वमाणा, एग महं मोग्गररूवं वा, मुसुंढिरूवं वा," इत्यादि, " एवं पुहुत्तं विउच्चमाणा मोग्गररूवाणि वा, मुसुंदिरूपाणि वा" इत्यादि इस पाठ का 'तात्पर्य ऐसा है कि गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि हे गौतम ! नारक एकरूप की भी विकुर्वणा कर सकता है और अनेक કરી શકે છે–એટલે કે વિક્રિયાશક્તિ દ્વારા એક જ આયુધરૂપે પિતાના શરીરને પરિણુમાવી શકે છે, અથવા અનેક આયુધ શસ્ત્રોરૂપે પિતાના શરીરને પરિણ भावी श छ ? तेना उत्तर मापता महावीर प्रभु ४३ छ- (जहा जीवाभिगमे आलावगो तहा नेयव्यो जाव दुरहियासे) 3 गौतम | मा विषयमा यो આલાપક જીવાભિગમ સૂત્રમાં આપેલ છે, એ જ આલાપક અહીં પણ अड ४२वी. ते माला५४ “ दुरध्यास" ५४ पन्त १ अड ४२ न . ते मादा५४ नीचे प्रमाणे छ १ (गोयमा ! एगत्तं पि पहु विउव्वित्तए पुहुत्तं पि पभू विउवित्तिए, एगत्तं विउत्रमाणा, एगं महं मोगररूवं वा, मुसुढिरूवं वा, " इत्यादि " एवं पुडुत्तं विउत्रमाणा मोग्गरस्वाणि वा, मुसुढि रूवाणि वा ". ગતમ! નારક જીવ એક રૂણની વિકુવરણ પણ કરી શકે છે અને અનેક રૂપિયાની વિકૃર્વણું પણ કરી શકે છે. જ્યારે તે એક રૂપની વિકૃર્વણ કરે છે
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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