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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ०३ सू० १ अन्यतीथिकमिथ्यात्वनिरूपणम् १६५ मनघडताए चिट्ठइ' यावत् - अन्योन्यघटतया यथा शृङ्खला परस्परसमुदायरूपतया तिष्ठति, यावत्करणात्-" आनुपूर्वीग्रथिता, अनन्तरग्रथिता, परंपर प्रथिता, अन्योन्यग्रथिता, अन्योन्यगुरुकतया अन्योन्यभारिकतया, अन्योन्य गुरुकसंभारिकतया 'इति संग्राह्यम् । दान्तिके योजयति-' एवामेव ' एवमेव शङ्खलावदेव ' एगमेगस्स जीवस्स' एकैकस्य जीवस्य न तु अन्यतोथिकाभिमतानां बहूनां-जीवानाम् 'बहूहिं आजाइ सहस्सेहि' बहुभि आजातिसहस्र अनेकप्रकारेपु. आजातिसहस्रेषु अतीतकालिकेषु देवादिजन्मसु तत्कालापेक्षया सत्सु क्रमप्रवृत्तेषु 'बहूई आउयसहस्साई' बहूनि-आयुष्कसहस्राणि 'आणुपुट्विं गठियाई जावमन्न घडत्तए चिटइ' तो जैसे वह शृंखला यावत् परस्पर में समुदाय रूप से रहती है ' एवामेव ' तो इसी शृंखला के अनुसार 'एगमेगस्स जीवस्स' अन्यतीर्थिक जनों द्वारा मान्य अनेक जीवों के नहीं, किन्तु एक एक जीव के 'आजाइसहस्सेहिं ' अनेक प्रकारके देवादिक भवों के साथ जो कि भूतकाल में हो चुके हैं और क्रम २ से ही जो हुए हैं तथा जो अपने काल की अपेक्षा अस्तित्व विशिष्ट थे 'बहूहिँ आउयसहस्साई' अनेक हजार आयुएँ आणुपुत्वि गढियाइं जाव चिहति ' आनुपूर्वी रूप से अथित-प्रतिबद्ध हैं। तात्पर्य कहने का यह है कि एक जीव के वर्तमान भव से लगाकर भूतकाल में जितने भी भव हो चुके हैं उन सव भवों की आयुऍ परस्पर में एक भव की आयु से दूसरे भव की आयु, दूसरे भव की आयु से तीसरे भव की आयु इत्यादि क्रम से प्रत्येक जीव के विवक्षित थयो छे) (जाव अन्नमन्नघडताए चिठुइ) ते सism वी शत ( यावत् ) ५२२५२मा समुदाय३ये रहेसी डाय छ, (एवामेव) ते सांनी संभ ( एगमेगस्स जीवस्स) प्रत्येन (अन्य तीथिनी मान्यता अनुसार भने वाना नही) ( आजाइसहस्सेहिं ) मने २ भवानी स.थे (અનેક પ્રકારના દેવાદિક ભવેની સાથે કે જે ભૂતકાળમાં થઈ ચૂકયા છે, અને ક્રમશઃ જ જે થયા છે, અને જે તેમના કાળની અપેક્ષાએ અસ્તિત્વ विशिः हत ) ( बहूहि आउयसहस्साई ) मने डर मायुमा " आणुपुनि गढियाई जोव चिट्ठति " मानु पूवी ३१ अथित પ્રતિબદ્ધ છે. આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે-એક જીવના વર્તમાનથી લઈને ભૂતકાળમાં જેટલા ભ થઈ ચૂક્યા છે, એ સઘળા ભવેના આયુષ્ય પરસ્પરમાં-એક ભવના આયુ સાથે બીજા ભવનું આયુ, બીજા ભવના આયુ સાથે ત્રીજા ભવનું આયુ ઈત્યાદિ ક્રમે- પ્રત્યેક જીવન પ્રત્યેક ભવના આયુની
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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