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________________ भगवती १६४ अथ यत्तूक्तम् ‘एको जीवः एकेन समयेन द्वे आयुपी पतिसंवेदयति, तदपि असत्यम् युगपदायुद्धयप्रतिसंवेदनेन एककालावच्छेदेन भवद्वयभवनापत्तेः तस्मात् एकदाऽऽयुईयवेदनमपि मिथ्यैव किन्तु 'अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि हे गौतम ! अहं पुनर्यत् एवं-वक्ष्यमाणरीत्या आख्यामि 'जाव-पख्वेमि' यावत् मरूपयामि, यावत्करणाम् " भाषे, प्रज्ञापयामि, इति संग्राह्यम् । तदेवाह-से जहा. नामए जाल गंठिया ' तद्यथानाम जालग्रन्थिका, 'सिया' स्यात्, अस्मिन्सिद्धान्तपक्षे जालग्रन्थिकापदेन शृङ्खलामात्ररूपार्थों ग्रहीतव्यः, जाव - अन्न ऐसा कथन नहीं बन सकता है । इस तरह आयुओं में जालग्रन्थिका की कल्पना केवल-अन्यतीर्थिक जनों की एक असत्कल्पना ही है । अब जो ऐसा कहां गया है कि ‘एको जीवो एकेन समयेन दे आयुषी प्रति संवेदयति ' एक जीव एक समय में दो आयुओं को भोगता है-सो यह कथन भी असल है। कारण कि ऐसी मान्यता में, एक ही समय में एक ही जीव की दो भवों वाला मानने का प्रसंग प्रास होगा अतः एक ही समय में आयुद्ध का संवेदन मानना भी मिथ्या ही है । हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूं, मैं ऐसी प्रज्ञापना करता हूं और मैं ऐसी प्ररूपणा करता हूं 'अहं पुण गोयमा ! एवलाइक्खामि, जाव परूवेमि' यहां यानस्पद से 'भाषे, प्रज्ञापयामे' इस पाठ का संग्रह किया गया है। 'से जहानामए जालगंठिया सिया' जैसे कोई एक जालग्रन्थिका हो अर्थात् एक सांकल-श्रृंखला हो क्यों कि यहां पर सिद्धान्त पक्ष जोल अन्धिका पद से यही श्रृंखला रूप अर्थविवक्षिन हुआ है 'जाव अन्नઅન્યતીથિ કેની આયુઓમાં જાળઝન્શિકાની કલ્પના બિલકુલ અસત્ય (જૂઠી) ४२ छे. qणी मेरे ४ाम माथु छ है (एको जीव एकेन समयेन द्वे आयुषी प्रतिसंवेदयति ) ( 4 से समय में मायुमार्नु वेहन ४२ छ) તે કથન પણ અસત્ય છે, કારણ કે એ કથનને સત્ય માનવાથી એવુ માનવું પડશે કે એક જ જીવ એક જ સમયે બે ભવ કરે છે. તે કારણે એક જ સમયે બે આયુઓનુ સંવેદન કરવાની વાત પણ મિથ્યા છે. હવે આ વિષયમાં મહાવીર પ્રભુ પિતાની શી માન્યતા છે તે પ્રકટ કરે છે(अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि, जाव परूवेमि) गौतम 1 ई मे छ , मे मापY ४३ छु, मे सभमा छु भने मेवी ५३५।४३ छु-(से जहा नामए जालगंठिया सिया) थारी अन्थि । छ-मेट मे सism છે-( કારણ કે અહી સિદ્ધાન્ત પક્ષ જાલરાન્શિકા પરથી એજ સાંકળરૂપ અર્થ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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