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________________ १५२ भगवतीसरे गौतम ! यत् ते अन्ययूथिकाः तच्चैत्रपरभवायुप्कं च येते एवम्भाहुः तद् मिध्या, अहं पुनर्गतम ! एवम् आख्यामि यावत्-प्ररूपयामि- तद् यथानाम जाल ग्रन्धिका स्यात् यावत् अन्योन्यघटतया तिष्ठति, एवमेव एफैकस्य जीवस्य बह भिराजातिसहस्रः वहनि आयुष्क सहस्राणि आनुपूर्वीग्रपितानि यावत्-तिष्ठ न्ति, एकोऽपि च जीवः एकेन समयेन एकम् आयुष्कं प्रतिसंवेदयति, तद्यथा-इह करता है, उसी समय में परभव संबंधी आयु का भी अनुभव करता है। (जाव से कहमेयं भंते । एवं ) तो क्या हे भदंत ! यह इसी प्रकार से है ? ( गोयमा ! ज णं ते अन्नउत्थिया तं चेव परभवियाउयं च ते एवमाहंसु तं मिच्छा ) हे गौतम ! उन अन्यतीर्थिकों ने जो पूर्वोक्तरूप से " परभव आयु का अनुभव करता है " यहां तक कहा है वह उन्हों ने मिथ्या कहा है । ( अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि ) मैं तो हे गौतम ! ऐसा कहता हूं (जाव परूवासि ) यावत् ऐसी प्ररूपणा करता है (जहा नामए जालगंठिया सिया) से कोई एक जालग्रन्थिका हो (जाव अन्नमन्न घडत्ताए चिट्ठति) और उसमें यावत् ग्रन्थियां अन्योन्य समुदायरूप से रहती हों ( एवामेव एगमेगस्स जीवस्स बहहिं आजा. इसहस्से हिं, वहहिं आउयसहस्साई आणुपुच्चि गढियाई जाव चिट्ठति ) हमी प्रकोर से एक एक जीव के अनेक हजार भव अनेक हजार आयुकर्म क्रमशः उसके साथ गंथे रहते हैं। ( एगे वि यणं जीवे एगेणं सधी मायुनी पाय मानुसार ४२ डाय छे. (जाव से कहमेय भंते ! एवं) હે ભદન્ત ! તેમની તે માન્યતા શું સાચી છે?–શું એ પ્રમાણે જ બને છે? (गोयमा ! ज णं ते अन्नउस्थिया त चेव परभवियाउय च जे ते एवमासुतं मिच्छा ) 3 गौतम ! मन्यतार्थिी " त्यारे ५२१ समधी मायुनी पर અનુભવ કરતા હોય છે” ત્યાં સુધીનું જે પૂર્વોક્ત કથન કહ્યું છે, તે મિથ્યા ४ई छ. ( अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवामि) 3 गौतम ! तो गे ९७, यावत् सेवी ५३५। ७३ छु (जहा नामए जालगठिया सिया) ४ न्यिा डाय, (जाव अन्नमन्नघउत्ताए चिति) ते કાળગ્રંથિકાનું ઉપર્યુક્ત સમસ્ત વર્ણન “રન્થિઓ અન્ય સમુદાયરૂપે રહેલી डाय,' त्यां सुधातुं वन डी अY ४२. (एवामेव एगमेगस्स जीवस्स यहहिं आजाइमहस्से हि आउयसहस्साई आणुपुचि गढियाई जाब चिटुति ) मेर પ્રમાણે પ્રત્યેક જીવના અનેક હજાર ભવ અનેક હજાર આયુકર્મ સાથે ક્રમશઃ थायदा २९ छ. (एगे विय ण जीवे एगेण समएण एग आउयं पडिसंवेदे)
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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