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________________ - - - - - - ५७० . . . . . . मनातीको मण्डितपुत्र ! मात्मात्म संरतस्य मनगारस्य ईर्यासमितस्य यानव-गुप्त प्रमचारिया, भायुक्तं गच्छतः भापुरतं तिष्ठतः आयुर्वं निपीदतः आयुगं स्ववर्तयमानस्य, आयुक्तं यसमविप्र-कम्पल-पादमोउन गृहानस्य, निक्षिपमाणस्य, यावत्-चक्षुः पक्ष्मनिपातमपि विमात्रा, यक्ष्मा, ईर्यापयिकी क्रिया क्रियते, सा प्रथमसमयघद्धस्पृष्टा दितीयसमपपेदिता, कृतीयसमयनिर्जरिता, सा बदा, स्पृष्टा, शीघ ही पानीके ऊपर आ जाती हैं। (एवामेव मंडियपुत्ता । असत्ता' संयुडस्स) इसी तरह से हे मंटितपुत्र ! आस्मा बारा आत्मामें संवृत घने-निमग्न पने हुए (ईरिया समियस्स जान गुनयंभयारियरस, आउत्तं गच्छमाणस्स, आउत्तं चिट्ठमाणस्स, आउत्तं निसीयमाणस्म, आउ तुयट्ठमाणस्स, आउत्तं चत्यपडिग्गह-कंपल-पायपुच्छणं गेण्हमाणस्स मिक्खियमाणस्स अणगारस्स) ईर्यासमिन यावत गुप्तब्रह्मचारी, तथा उपयोगसहित गमन करनेवाले, उपयोगसहित स्थिति करनेवाले, उपयोगसहित बैठने वाले, उपयोगसहित करवट बदलने वाले, उपयोग सहित वस्त्र, पात्र, कम्बल पादप्रोग्छनको उठानेवाले, धरनेवाले अनगार की (जाव चक्खुपम्हनिचायमवि वेमाया सुहमा ईरियापहिया किरिया कजइ) यावत् चक्षुका उन्मेप निमेपादि स्पन्दन (चलना) रूप क्रिया भी उपयोगसहित ही होती है । तथा-विमात्रावाली सूक्ष्म ई-पथिकी क्रिया भी उपयोगपूर्वक ही होती है । (सा पढमसमययद्धपुटा, वितियसमयवेइया, तइयसमयनिजरिया) वह ईर्यापथिक छ. (एवामेव मंडियपुत्ता! अत्तत्ता संवुडस्स) भडितपुत्र प्रभारी, मात्मा द्वारा मामामा संकृत गनेसा-निभान भनेता, (ईरियासमियस्स जाव गुत्तभयारियस्स, आउत्तं गच्छमाणस्स, आउत्तं चिट्ठमाणस्स, आउत्तं निसीयमाणस्स, आउत्तं तुयठमाणस्स, आउत्तं वत्थपडिग्गह-कंवलपायपुच्छणं गेण्डमाणस्स 'णिक्खिरमाणस्स अणगारस्त) ध्यासाभतथा सधन शुलप्रदायारी पर्यन्तना शुरવાળે, ઉપગ સહિત ગમન કરનાર, ઉપયોગ સહિત સ્થિતિ કરનાર, ઉપગ સહિત બેસનાર, ઉપગ સહિત પડખું બદલનાર, ઉપયોગ સહિત વસ્ત્ર, પાત્ર, કમ્બલ અને पानन SITEIR भने भूना२ मारनी (जाव चक्खपम्हनिवायमवि माया महमा ईरियावहिया किरिया कज्जई) मांजना भारपानी ठिया પર્વતની સઘળી ક્રિયાઓ ઉપગ સહિત જ થાય છે. તથા વિમાત્રાવાળી પરિમાણરહિત कपिथिक्षा या पयागपू'४४ थतीसाय छे. (सा पढमसमयवद्धपट्टा, 'वितियसमयवेड्या, तइयसमयनिजरिया) ते धाथि हिया प्रथम समयमा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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