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________________ प्र.टी. श. ३ उ.२ सू.८ शक्रस्य वज्रमोक्षणभगवन्छरणागमननिरूपणम् ४३३ टीका-चमरम्मति शक्रस्य वजमोक्षणं स्वशणागमनश्च गौतमम्मतिभगवान् वक्ति-'तए णं सक्के' इत्यादि। . ततः उपर्युक्त चमरोल्पातानन्तरं खलु स शक्रः 'देविदे देवराया' देवेन्द्रो देवराजः 'तं अणिटुं' तां चमरोक्ताम् अनिष्टां दुर्लक्षणाम् 'जाव-अमणामां' यावत्-अमन आमाम् मनसेऽरोचमाणां मनःपतिकूलाम् , यावत्करणात्-अकान्ताम् , अप्रियाम् , अशुभाम्, अमनोज्ञाम् , इति संग्राह्यम् 'अमुयपुव्वं' अश्रुतपूर्वी पूर्व कदाचिदपि न श्रुताम् 'फरुसं' पमपां कठोराम् गिरं वाणीम् 'सोचा' श्रुत्वा 'निसम्म' निशम्य हृद्यवधार्य 'आमुरुत्ते' आमुरुप्तः शीघ्रकुपिनो जातः 'जावजहां जम्बूद्वीप नामका द्वीप था और यावत् जहां उत्तम अशोक का वृक्ष था, एवं जहां में धा हे गौतम ! वहां वह आया (भीए भयगग्गरमरे) उस समय वह अत्यंत भयभीत था और भय के मारे उसका कण्ठ गद्द स्वरवाला बना हुआ था। (भगवं सरणं इति वयमाणे ममं दोण्हं वि पायाणं अंतरंसि झत्तिवेगेणं समोपडिए) हे भगवान् ! मुझे अब आपही शरणभूत हो ऐसा कहता हुआ वह मेरे दोनों पैरों के बीच में झट से वेगपूर्वक पड़ गया ॥सू०८॥ टीकार्थ-चमर के पूर्वोक्तरूप से उत्पात मचाने के बाद 'तए णं से सक्के देविंदे देवराया उस देवेन्द्र देवराज शक्रने 'तं अनिद्वं जाव अमणामं उस अनिष्ट यावत् मनः प्रतिकूल (असुयपुवां फरुस) चमरकी अश्रुतपूर्व कठोर 'गिरं' वाणी को जब सुना-तब (सोचा) सुनकरके 'निसम्म' और उसका अच्छी तरह से विचार करके वह 'आसुरुत्ते' इकदम उसी समय कुपित हो गया। यहां यावत् पद भारापना ४रत रतो, त्यां ते व्यो. गौतम ! (भीए भयगग्गरसरे) त समय ते लयमातहतो. नयने रहो ना ४ गगह स्वरवाणो मन्यो ता. ( भगवं सरणं इतिषयमाणे ममं दोपहं वि पायाणं अंतरंसि झत्तिवेगेणं समोवडिए) “હે ભગવાન ! મને આપનું શરણ હે,” એમ કહીને તે ઘણું વેગથી મારા બને પગ વચ્ચે આવીને પડી ગયે. ટીકર્થ––ચમાર જ્યારે ઉપરોકત ઉત્પાત મચાવ્યો ત્યારે શકે શું કર્યું તે सूत्र४२ - 'तएणं से सक्के देविंद देवराया, देवेन्द्र देव२४ 3, 'तं अनि जाव अमणाम' यभरेन्द्रना ते अनिष्टथी auन समनाश सुधानां विषाणां (अमुयपुलं फरुम) भने ' ही ५५ समाभान माया हाय मा ४२ क्यने (सोचा) Airया मने 'निसम्म' तेना ५२ यानपूर्व वियार ध्या. त्यारे 'आमरुत्ते' मे४ मते ते घरी यायभान थयो. महा 'जाव' पक्षी LEHHHHHHH
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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