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________________ ४३२ - - - - - - भगस्ती पिधाय, तथैव संमानमुकुटविटपः, सालम्बास्तामरणः ऊन पादः बाशिरा, कक्षागतस्वेदमिय विनिर्मुशन, तया उत्कृष्टया, यावत्-असंगयेयानाम् द्वीपसमद्राणाम मध्यं मध्येन व्यतिमनन्, यव जम्यूद्वीपः, यावद-यत्रत्र अशोकवरपादपः यगैर मम अन्तिफरतीय उपागच्छति, भीतः,भयगदगदुस्वरः 'भगवान् शरणम्' इति ब्रुवाणः मम द्वयोरपि पादयोः अन्तरे झटिनि वेगेन समवपतितः ॥१०॥ (भियायित्ता पिहापित्ता) ध्यान करके अर्थात् वह क्या है ऐसा विचार फरके और स्पृहा करके (तहेव) उसी तरह से जिस क्षण में उसने विचार किया उसी क्षण में (संभग्गमुकढविए) उसके मस्तक का मुकुट टूट गया । अर्थात् जय वहां से चलने लगा तो उसका मुख अपने स्थान की ओर नीचा हो जाने के कारण उसका मुकुट टूट गया । (सालंयहत्याभरणे) उसके हाथों के आभरण नीचे की ओर लटक आये उपाए अहोसिरे) दोनों पैर उसके उचे की ओर हो गये और शिर उसका नीचे की ओर हो गया (करवागयसेय पियविणिम्मुयमाणे) दोनों कक्षाओं में-कांखों में-से मानों उसके पसीना सा निकलने लगा। इस तरह की स्थिति से युक्त हुआ वह (ताए उकिट्टयाए) उस देवसंबंधी उत्कृष्ट गति द्वारा (जाच तिरियमसंखेनाणं दीवसमुः दाणं मझं मज्जेणं वीईचयमाणे) यावत् तिर्यग असंख्यात द्वीप समुद्रों को उनके बीचों बीच से होकर पार करता हुआ (जेणेव जंबूदीवे जाच जेणेच असोधवरपायवे जेणेच ममं अंतिए तेणेव उवागच्छद) पिया ध्या") (झियायित्ता पिदायिना) तो त्यांथा नासी पानात क्यिार ४ ४ खो shi, (तहेव) मे सभये (संभग्गमुकुडविडए) तेना भरत: ५२ મુગટ તૂટી ગયે. એટલે કે જ્યારે તે ત્યાંથી પાછા ફરવા લાગ્યા ત્યારે તેનું મુખ તેના २॥ २६ नायु नभी ना भुसट तूटी गयो (सालबहत्याभरणे) तना डायना माभूपाळी नीयनी मा exqn aयां (उद्धपाए अहोसिरे) भन्ने ५ या मन शिर नीयु २ यु. ( कक्खागयसेयं पित्र विणिम्मुयमाणे) तनी मन्न બગલમાંથી જાણે કે પરસેવે છૂટવા લાગે. આ પ્રકારની જેની દુર્દશા થઈ છે એ a यमरेन्द्र (ताए उकिट्टयाए) पातानी Gट देवशतिथी (जाव तिरीयमसंखेजाणं दीवसमुदाणं मशं मज्जेणं बीईवयमाणे) तियन सय द्वीप जमीनी यथा sses भने पा२:४२i . (जेणे जंबदीवे जा जेणेव असोयवरपायवे जेणेव . ममं अंतिए तेणेव उवांगच्छइयां द्वीप हता, 'यावत' या मवृक्ष नीय' (महावीर प्रभु) मितिभाना
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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