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________________ ५८. भगव भगवन् ! इति तृतीयो गौतमो वायुभूतिः 'अनगारः श्रमणं भगवन्तम् महावीरं वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा येनैव द्वितीयो गौतमोऽग्निभूतिः अनगारस्तेनैव उपागच्छति, उपागत्य द्वितीयं गौतमम् - अप्रिभूतिम् अनगारम् वन्दते, नमस्यति, एतदर्थं सम्यग् विनयेन भूयोभूयः समापयति ॥ मू० ६ ॥ इत्यादि वही द्वितीय गम यहां जानना चाहिये (जाव अग्गमहिसीओ) और वह अग्रमहिषियोंके प्रकरणकी समाप्ति तक यहां ग्रहण करना चाहिये ( सच्चेणं एसमट्ठे) हे गौतम ! यह अर्थ बिलकुल सत्य है । (सेवं भंते! सेवं भंते । ति तच्चे गायमे वाउभूई अणगारे सम भगवं महावीरं बंदर नमसइ) हे भदन्त । आप देवानुप्रियने जो कहा है वह ऐसा ही है-वह हे भदन्त ! ऐसा ही है इस प्रकार कह कर तृतीय गौतम वायुभूति अनगारने श्रमण भगवान् महावीर को वंदन नमस्कार किया बाद में वे (जेणेव दोच्चे गोगमे अग्निभूई अणगारे तेणेव उचागच्छइ) जहां द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार थे वहां आये ( जयागच्छित्ता ) वहां आकर उन्होंने ( दोचं गौयमं अग्भूि अणगारं बंद नर्मसह एयमत्थं सम्मं विणएणं भुजो भुज्जो खामेt) द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगारको वंदना की उन्हें नमस्कार किया और उनकी बात पर विश्वास आदि न करने जन्य दोष की विनयपूर्वक बार२ उनसे क्षमा मागी || सू० ६ + धी समृद्धिवाणो छे. अहीं मील सूत्रनुं समस्त वर्षान लेभे (जाव अग्गमहिसीओ) पट्टीना अ१२ सुधीभां भवतु समृद्धि विधुवा शक्ति माहिनु वार्डन सही श्रद्धयु ४२थुं (सच्चेणं एसमट्ठे) हे गौतम या बात तहन साथी छे. सेवं भंते ति तच्चे गोयमे वाउभूई अणगारे समणे भगव महावीर वंदइ नमसइ) આપનું કથન સત્ય છે, તેમાં કોઇ સદેહને સ્થાન નથી” એમ કહીને ત્રીજા ગૌતમ વાયુભૂતિ અણુગારે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદા નમસ્કાર કર્યાં ત્યાર બાદ લેવ देच्चे गोयमे अग्गिभूइ अणगारे तेणेव उवागच्छ तेसो नयां जीवन गायुधर अग्निभूति मधुगार हुता त्यां गया. ( उवागच्छित्ता) त्यां लाने तेथे दोच्चे गोयमे अग्गभुई अणगार चंदइ नमसइ एयमहं सम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जा खामेइ) मील गौतम अग्निभूति थुगारने बहु। नभस्र वर्षा भने तेमनी वातमां શ્રદ્દા ન કરવાને માટે લાગેલા દોષને માટે વિનય પૂર્વક વારંવાર ક્ષમા માગી. ॥ સૂ ૬ ધ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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