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________________ प्रमेयनन्द्रिका टोका श. ३. उ. १ भगवता अग्निभूतेः कथन समय नम् ५९ टीका - महावीरस्वामी पूर्व सन्दर्भे अग्निभूतिकथितचमरादिसम्बन्धिसमृद्ध्यादि fare वायुभूतेः सन्देहं प्रश्नाशयश्च बुद्धवा अग्निभूतेर्वचनानि सत्यापयन प्रमापयंश्च वायुभूतिसन्देहनिवारणाय तमेवमवादीत् - 'गोमाई !" इत्यादि, हे गौतम ! अन्यथमण निर्ग्रन्यान् आमन्त्र्य भगवान् प्राह-चमरादीनां समृद्ध्यादीन सामान्यविशेषप्रकाराभ्यां स यदवर्णयत माज्ञापयत् मारुपयच तत्सर्वं सत्यमेव तेन कथितम् इति तदवर्णितमाचमरादिष्टमपि पर्यन्तस्य समृद्धयादिवृत्तान्त महमपि आख्यामि-भाषे प्रज्ञापयामि प्ररूपयामि चेत्येवं ब्रुवाणस्य श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य चचनम् आप्तत्वेन यथार्थत्वात् श्रद्धया सत्यात्मकं प्रामाणि टीकार्य - पूर्वसन्दर्भ ( प्रकरण ) में अग्निभूति कथित चमरादि संबन्धी समृद्धि आदि विषयक वायुभूति के वचनो में सत्यता और प्रमाणता प्रकट करते हुए वायुभूति के सन्देह को और प्रश्न के आशय को समझकर महावीरस्वामीने अग्निभूति के वचनों में सत्यता और प्रमाणता प्रकट करते हुए वायुभूति के सन्देह को निवारण करने के लिये उनसे वही बात कही कि हे वायुभूते ! गौतम जो ! अग्निभूति ने चमर आदि की समृद्धि आदिका सामान्य विशेष रूपसे वर्णन किया है, प्रज्ञापन किया है प्ररूपणा कि है यह सब उन्होंने सत्य ही कहा है । मैं भी तद्वर्णित चमरादि की समृद्धि आदि का एवं अग्रमहिपियों तक की समृद्धि आदिका सय वृत्तान्त उसे वैसा ही कहता हूं, वैसा ही उस पर भाषण करता हूं, वैसा ही जनाता हूं, वैसा ही उसे प्ररूपित करता हूं, इस प्रकार कहने वाले श्रमण भगवान् महावीर के वचन को आप्तवचन होने के कारण यथार्थ रूपसे ટીકાથ- આગલા પ્રકરણમાં અગ્નિભૂતિ અણુગારે કહેલ ચમરાદિની ઋદ્ધિ આદિના વિષયમાં વાયુભૂતિના હૃદયમાં જન્મેલા સદેહન સમજીને ભગવાન મહાવીરે અગ્નિભૂતિ અણુગારના કથનમાં રહેલી સત્યતા પ્રકટ કરીને વાયુભૂતિ અણુગારના સદૈહનું નિવારણ કેવી રીતે કર્યું" તે આ સૂત્રમાં તાજુ છે. મહાવીર પ્રભુએ કયુ કે અગ્નિભૂતિએ ચમરાદિની ઋદ્ધિ, વિષુવણા શકિત આદિનું જે વર્ણન કર્યું છે તે સાચુ છે હું... પણ ચમરાદિની સદ્ધિ આદિ વિષે તથા તેની પટ્ટરાણીએ પન્તની ઋદ્ધિ આદિ વિષે એજ પ્રમાણે કહું છું ઐજ પ્રમાણે પ્રતિપાદન કરૂં છું, એજ પ્રમાણે સમજાવું છું અને એજ પ્રમાણે પ્રરૂપણા : " -કરૂં છું. મહાવીર પ્રભુના તે વચનેના આપ્ત વચન ગણીને તે વચનામાં વાયુભૂતિને
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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