SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६७ ममेयचन्द्रिका टीका श ३ ३.८ १ भवनपत्यादिदेवस्वरूपनिरूपणम् 'रिह' रिge, aथैव 'पणियकुमाराण' स्तनितकुमाराणामुपरि दश देवा. अधि पत्यादिक कुर्वन्तो विहरन्ति तत्र ' घोस' घोप 'महाघोस' महाघोपमेति द्वौ स्वनितकुमारेन्द्रौ तयोर्लोकपालानाह- 'आवत' आवर्च', 'वियावत' व्यावर्त्त ' नदियावत्त' नन्द्यावर्त्त 'महानदियावत्त' महानन्द्यावर्तच, 'एव अनया रीत्या 'माणियन्त्र' भणितव्यम् 'जहा असुरकुमारा' यथा अरकुमारा – सर्वमटर कुमारवद् विज्ञेयम् इत्यर्थं । अथ दशदक्षिणमत्रन पतीन्द्राणाम् प्रथम प्रथम लोकपालनामा निमाड- 'सोमे य' इत्यादि । सोम १, कालवाल २ चित्र ३, मम ४, तेजः ५, रूप ६, जल ७, स्वरित ८, काल ९, भावर्त्त १०, स्थापित किये रहते है । 'यणियकुमाराण' स्तनितकुमारों के ऊपर ये दश देव आधिपत्य आदि करते है 'घोस महाघोस' घोष और महा घोष ये दो तो इनके इन्द्र है । इनके 'आवत्त-वियावन्त-नविभावच, महानदियावत' ये आवर्च, व्यावर्त' नथावर्त और महानथापर्त, ये चार लोकपाल है | इस प्रकार घोष इन्द्र और उनके ये चार लोक पाल, तथा महाघोष इन्द्र और इन्हीं नामके पेही चार लोकपाल इस प्रकार दशदेव स्तनितकुमारों के ऊपर अपना अधिपतित्व आदि स्थापित किये रहते है । अर्थात् स्तनितकुमार इन दश देवोंके आधीन रहते है । 'एव भाणिपव्यं जहा असुरकुमारा' नागकुमार आदिकों का और भी अवशिष्ट समस्त कथन असुरकुमारों की तरह जानना चाहिये । tय दक्षिण भवनपति इन्द्र, के जो चालीस ४० लोक्पाल कहे गये है उनमें से प्रत्येक इन्द्र के पहिले पहिले लोकपालके नाम प्रकट किये जाते है - सोम १, कालपाल २, विश्र ३, प्रभ ४, तेज ५, रूप ६, पर अभियतित्व, पोरपत्य, भर्तृत्व लोग हे 'थणियकुमाराण' स्तनितभाश पर नीना इस पोर्नु अधिपतित्व - 'घोस, महाघोस' घोष ने महाघोष नाभना तेभना में इन्द्रो तथा ते अन्नेन्द्र 'आधत्त, वियावत्त, नदिभावत, महानदिभाषत्त' भावते व्यावर्त्त, नद्यावर्त भने महानद्यावर्त में नामना प्यार, ચાર લોકપાલો છે. આ રીતે વેષ, દ્વેષના ચાર લોકપાàા, મહાઘેષ અને માથાષના ચાર લોકપાલો, એમ કુલ દસ દેવો તેમના ઉપર અધિપતિત્વ માદિ ભેળવે છે 'एष माणियम्य जहा असुरकुमारा' नागकुमार वगेरेनु नाही समस्त प्रथन અસુરકુમાંરાના કથન પ્રમાણે સમજવું દક્ષિણ ભવનપત્તિ ન્દ્રોના જે ચાલીશ (૪૦) લેાકપાલો ઢઢ્યા છે. તે લોકપાલોમાના પ્રત્યેક ઈન્દ્રના પહેલા લોકપાલનુ નામ સૂત્રકાર નીચેના સૂત્રદ્વારા પ્રકટ કરે છે– [૧]
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy