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________________ ७८६ समुत्पधन्ते समुद्भवन्ति त नहा' तपथा-'गादेगावा'मारमा विरा ग्रहाणा मालादीनां दण्डाफारतिर्यगायतश्रेणय 'गहसमला का प्रमावि इति वा उक्तग्रहाणामूर्धायनश्रेणयः 'गडगजिया इ वा' प्रागनितानि-पासंचा रादौ स्तनितानि इतिवा, 'गजुदाइ या' ग्रहयुदानि तिघा एकनसमे उमयो प्रहयो दक्षिणोत्तररूपेण समपछि तपा अवस्थानानि 'गसिंघारगा इवा' प्रा शशाटकानि इति वा ग्रहागां झटानामफलाकारेगावस्यानानि । उकन-पियति चाता महाणाम्-उपर्युपरि आत्ममार्गसस्थानाम्, भतिदा विषये समवामित्र समपातानाम् ॥१॥ आसन्न-क्रमयोगाव-भेदो-ल्लेखां-शुमर्दना ऽपसम्पै । युद्ध चतुष्पकार पराभराधेर्मनिभिरुक्तम् ॥२॥इति, आकाशे गति कुर्वता स्वस्व मार्गे उपर्युपरि स्थितानाम, मत्यन्तदूरसार परस्परमत्यासनतया दृष्टिगोचराणाम् ग्रहाणाम् आसन्नतया क्रमतया च तुम कारफ युद्ध पराशराय मुनिमि फथितम् तयाहि- . घक्ष्यमाण कार्य 'समुप्पचति' उत्पन्न होते है 'तजहा' जैसे-'गावगा य' मङ्गल आदि प्रहोंकी तिरछी दण्डाफार सभी भेणियों का होना 'गहमुसराइ घा' इन मगल आदिग्रहोंकी ऊपर की ओर विकृत लम्पी श्रेणियोंका होना, गहगजियाइ था' गृहोंके सचार भाषिके समयमें गजेनाए होना, 'गहजुधाइ या' एक नक्षत्र में दो प्रदोषा दक्षिणोचररूपसे समपम्तिके रूपमें अचस्यान होना, 'गहसिंघारगाह ग्रहोंफा मिंधाटेके आकारमें अपस्यान होना, कहा भी है-“आकाशमें गति करते हुए, तथा अपने अपने मार्ग पर उपर उपर रहे ए, तथा अत्यन्स दर होनेके कारण परस्पर अत्यन्त नजदीक रष्टिगोचर 'ना इमार' ना३ प्रमाना यो ' समप्पजति बपन्न बायत anti भाभा जात BC सता नी- जहा) या [Sridi] पर प्रभाव -(गादडाइ पा' भार पनी ति 14R aial दिया की, 'गाससलाइ पा' P भ ils I 8५नी मे विस्तृत सादिया मी, 'गहगज्जियाइ पा' होना सार MR अभरे नाना वी. जनार ना' : नक्षत्रमा ने ठान वित्तय सभपति मावा वु 'गहसिपारगाइ पा' सार्नु सिमाहान रेमान, पर માકાશમાં ગતિ કરતા તથા પિત્તપાતાના માર્ગ પર અપાર પર લા અને અત્યન્ત
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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