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________________ २७३ सुपा टीका स्था०४ उ०४ सू० ५ व्याधिभेदनिरूपणम् विषपरिणामो हि व्याधिरिति तदधिकाराद् व्याधिभेदानिरूपयितुमाह-- म्लम्-चउविहे वाहि पण्णत्ते, तं जहा-वाइए १, पित्तिए २, सिंमिए ३, संनिवाइए ४॥ चउठिवहा तिगिच्छा पण्णत्ता, तं जहा-विजो १, ओसधाई २, आउरे ३, परिचारए ४ ॥ सू० ५॥ छाया-चतुर्विधो व्याधिः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-वातिकः १, पैत्तिकः, श्लैष्मिका ३, सानिपातिकः ।। चतुर्विधा चिकित्सा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-वैद्यः १, औषधानि २, आतुरः ३, परिचारकः । ॥ सू० ५॥ । समय क्षेत्र (अढाई द्वीप) प्रमाणवाले शरीरको अपने प्रभावसे प्रभावित कर सकता है ऐसा जानना चाहिये यह सब कथन किसके विषका कितना विषय है इस बातको प्रकट करने के लिये किया गया है ।।सू०४॥ विषका परिणाम व्याधिरूप होता है अतः अब सूत्रकार व्याधिके भेदोंका निरूपण करते हैं-"चउबिहे वाही पण्णत्ते" इत्यादि सूत्र ५ ॥ सूत्रार्थ-व्याधि चार प्रकारकी कही गई है-जैसे-वातजन्य व्याधि १ पित्तजन्य व्याधि २ कफजन्य व्याधि ३ और सन्निपातजन्य व्याधि ४ चिकित्सा चार प्रकारकी कही गई है जैसे--वातकी चिकित्सा १ पित्तकी चिकित्सा २ कफकी चिकित्सा ३ और सन्निपातकी चिकित्सा ४ પ્રભાવિત કરવાને સમર્થ હોય છે. આ કથન પણ તેને પ્રભાવ બતાવવા નિમિત્તે જ કરવામાં આવ્યું છે, એમ સમજવું. આ કથન વિછી આદિના વિષને કેટલો વિષય છે તે પ્રકટ કરવા માટે જ કરવામાં આવ્યું છે. એ સૂત્ર ૪ - વિષનું પરિણામ વ્યાધિ રૂપ હોય છે. તેથી હવે સૂત્રકાર વ્યાધિના सहानु नि३५ ४२ छ-" चउन्विहे बाही पण्णत" त्याह-सू. ५ सूत्रा-व्याधिना या२ ५४२ ४ छ-(१) वातन्य, (२) पित्तन्य, (3) કફજન્ય અને (૪) સનિપાત જન્ય. शिरिसा यार प्रा२नी ४डी 2-(१) वातनी मिसा, (२) पित्तनी (Asसा, (3) ४३नी यिरिसा मन (४) सन्निपातनी विहिसा. स्था०-३५
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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