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________________ सुंभा टीका स्था० २ २०१ म० वैविध्वनिम्पणम् ३५ छाया-द्विविधः काल प्रतप्तः, तयथा-अवसर्पिणीकालश्चैव, उत्मर्पिणीकालश्चैव विविध आकाशः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-लोकाकाशश्चैव अलोकाकाशश्चैत्र ।।मू०१८॥ टीका-'दुविहे काले इत्यादि । कल्यते-परिच्छिद्यते ज्ञायते वस्त्यनेनेति कालः, कलनं वा कालानां समयादि रूपाणां समूहो वा काल:-वर्तनादिरूपः 'बट्टणा लवखणो कालो' इति वचनात । स चावसर्पिण्युत्सर्पिगीभेदेन द्विविध । जगति महाविदेहादिभोगभूमिपु सदाऽवस्थितलक्षणस्तृतीयोऽपि कालो वर्तते तथाऽप्यत्र द्विस्थानकानुरोधाद् द्विविध एवं फाल: द्वन्ध का स्वरूप कहा जा चुका है अब द्रव्याधिकार को लेकर के ही द्रव्यविशेषरूप काल और आकाश की प्ररूपणा स्त्रकार करते हैं "दुविहे काले पण्णत्ते" इत्यादि । वस्तु जिसके द्वारा नवीन पुरानी होती हुई जानी जाती है उस का नाम काल है अथवा कलन का नाम काल है या समयादिरूप कलाओं का नाम काल है यह काल वर्तनादिरूप होता है तात्पर्य इसका ऐसा है कि काल निश्चय और व्यवहार की अपेक्षा से दो प्रकार का है वर्तनादिरूप काल निश्चयकाल और घडी घंटा आदि रूप काल व्यवहार काल है। उक्तं च-"दब्ध परिवहवो" इत्यादि। यह काल उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीके भेदसे दो प्रकारका कहा गया है महाविदेह क्षेत्र में सदा चतुर्थकाल अवस्थित रहता है तथा भोगभूमियों में-अकर्मभूमिमे तृतीय आदि काल अवस्थित रहता है इस तरह से दो कालों के अतिरिक्त एक सदा अवस्थितरूप काल भी होता है फिर દ્રવ્યના સ્વરૂપનું કથન સમાપ્ત થયું, હવે સૂત્રકાર અહીં દ્રવ્ય વિશેષ રૂપ કાળની અને આકાશની પ્રરૂપણ કરે છે– " दुबिहे काले पण्णत्त " त्या ॥ १८ ॥ વરતુ જેના દ્વારા નવી જુની થતી લાગે છે, તેનું નામ કાળ છે અથવા કલનનુ (જાણવું) નામ કાળ છે. અાવા સમયાદિ રૂપ કલાએનું નામ કાળ છે તકાળ વર્તનાદિ રૂપ હોય છે. આ કઘનને ભાવાર્થ એ છે કે કાળ નિશ્ચય અને વ્યવહારની અપેક્ષાએ બે પ્રકારનો છે. વર્તાનાદિ રૂપ કાળને નિશ્ચયકાળ, અને ઘંટાદિ રૂપ કાળને વ્યવહાર કાળ કહે છે. કાં પણ છે કે – ___“दव्य परिवट्टलो' त्यG. 21 m मा भने अपना ભેદથી બે પ્રકારને કહે છે. મહાવિદેડ ત્રિમાં સદા ચતુર્ઘ કાળ જ અવધિન (વિદ્યમાની રહે છે, તથા ભેગભૂમિએમાં તૃતીયાદિ કાળ અવધિત રહે છે,
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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