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________________ सुधा टोका म्या० . उ० १ ० १६ अनचारिप्रोविध्यनिरूपणम २५० अर्थश्रुनधर्मः । मृत्रार्थ योपिस्तव्याख्याउनगध्ययनमत्रम्य प्रथमा-ययने योनितिगायायां मकतप्रियदर्शिनीटी कायामवलोकनीया। 'चरिन यम्मे दुविहे' इत्यादि । चारित्रधर्मा द्विविध प्रज्ञानः, नया अगाग्वास्त्रियम .. अनगार चारित्रधर्मइचेति । तत्र-अगारं-गृहं, तद् योगाद अगागागृहम्याः तेषां ययारित्रधर्म:सम्यक्त्रमूलाणुव्रतादिपालनरूपासोऽगारचान्त्रिधर्मः । न विग्रने अगारं = गृहं येषां ते-अनगारा संयताः, तेषां यथास्त्रिधर्म: महावतादिपालनरूपः मोऽनगारचारित्रधर्मः । चारित्रधर्मश्र संयम इति संयममाह-'दविहे मंजमे' इत्यादि । संयमो द्विविधः-सरागसंयमः, वीतरागसंयमश्चेति । तत्र यो रागेण = मायाव्याख्यान है इस रूप जो श्रुनधर्म है वह अर्थ श्रुतधर्म है मृत्र और अर्थ की विस्तृत व्याख्या उत्तराध्ययन मृत्र के प्रथम अध्ययन में २३ वों गाथा की प्रियदर्शिनी टीका में की गई है सो वहीं से इसे देख लेनी चाहिये " चारित्तधम्मे दुविहे पणत्ते" चारित्रधर्म दो प्रकार का कहा गया है एक अगारका चारित्रधर्म और दमरा अनगार का चारित्र धर्म अगार नाम गृह का है इस गृह योग से यहां अगार शब्द से गृहस्थ जन गृहीत हुए हैं इन गृहस्थजनों का जो सम्यक्व महित मृलगुण अणुव्रत आदि का पालन रूप धर्म है, वह अगार चारित्र धर्म है तथा जिनको गृर का प्रतिवन्ध नहीं होता है वे अनगार हैं ऐसे अनगार संयत होते हैं इन संयतजनोंका जो महावतादि पालन रूप चारित्र धर्म है यह अनगार चारित्रधर्म है चारित्रधर्मका नाम ही संयम है अतः यह संयम " दुविहे मंजमे " इत्यादि कथन के अनुसार અર્થ છે, એવો તે અર્થ વ્યાખ્યાન છે. આ વ્યાખ્યાન રૂપ જે શતધર્મ છે તે અર્ધસુતધર્મ છે સૂત્ર અને અર્થની વ્યાખ્યા ઉત્તરાધ્યયન મૂત્રના પહેલા અધ્યયનની ૨૩ મી ગાથાની પ્રિયદર્શિની ટીકામાં વિસ્તારપૂર્વક આપવામાં આવેલ છે, તે જિજ્ઞાસુઓએ તે વાચી લેવી. "चारित्तधमो दुवि पण्णते" यात्रिय माना ४यो -(१) અગારને ચારિત્રધર્મ અને (૨) અગાને ચારિત્રધર્મ. અગાર એટલે . અડી અગાર શબ્દથી ગૃહસ્થજનને મre કરવા જોઈએ. તે ગૃહએ સ. કtવ સવિન મૂલગુણ અણન આદિને પાળા બંધનથી હિન હોય છે તેમને અગાર કહે છે એવાં અજગર સંયત હેાય છે, તે ન માને છે મહાવ્રતાદિ પાલનરૂપ ધર્મ છે તેને અગાર અગ્નિપમ કહે છે ચારિત્રધર્મનું नाम An७. "दुषित माने" या ५५ नुसार तो
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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