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________________ भया टीका स्था०२ उ०१ सू०८ आरम्भपरिनहानवयोधन धमाधयाम नि० २१२, इत्यादि । आरम्भश्चैत्र, परिग्रहश्चैव । व्याग्नापूर्ववत् । आरम्भ-परिग्रहावपक्षियापरित्यज्य च कोऽपि सम्यक्त्मानुभवं कर्तुं न नकोतीति भारः। द्वे स्थान अपरिज्ञाय आत्मा मुण्डः, पती-मुण्डः निलोचन गायनम्ना मृण्ड:-फपायाधपनयनेन भूत्वा, अगारादमा , निकम्य, केपला परिपक्षी, विशुद्धां या, अनगारितांत्रज्यां, नो-नेय प्रवनति नैव प्राप्नोति ।। एवम् अनेन प्रकारेण, यथा पूर्ववाक्ये-'दो ठाणाट अपरिणाना आया' इति पाठम्तथा उतः समारभ्योत्तरवाक्ये योजयित्वा पठनीयम् । नया चायम:हे स्थाने-प्रारम्भ-परिग्रहरूपे, अपरिज्ञाय आन्मा केवलं विशुद्धं परिपूर्ण न. वाटसहितं ब्रह्मचर्यवासंवत्मचर्यण-अव्रत्मविरमणेन. बासा निवासः-नाम-वर्षमा सस्तम् , नो-नैव आवसति-आचरति पालयितुं न समर्थो भवतीत्यर्थः। तक उसका परित्याग नहीं कर देता है तब तक बह आत्मा द्वन्य और भावरूप से मुगिडत होकर आगारावस्था से अनगारावर या दो पूर्णर-प से या विशुद्ध रूप से नहीं प्राप्त कर पाता है । शिर के केगों का मन करना इसका नाम द्रव्य से मुण्डित होना है, और कार आदि का परित्याग करना इसका नाम भाव से मुण्डित होना होता है केवल शब्द का अर्थ परिपूर्ण अथवा विशुद्ध है, अनगारिता शब्द का अर्थ प्रवज्या मुनिदीक्षा है और "नो प्रब जति" क्रियापद का अर्थ नहीं प्राप्त करता है ऐसा है हमी प्रकार से "णो केवलं बंभचेर बाममावसेजा " आत्मा जय नक आरम्भ परिग्रहप इन दो स्थानों को परिज्ञा से नहीं जान देता है और प्रत्याख्यान परिज्ञा ले उनका परित्याग नहीं कर देना है તેમનો પરિત્યાગ કરી દેતો નથી, ત્યાં સુધી તે આત્મા દ્રવ્ય અને ભાવરૂપે મુંડિત થઈને આગારાવસ્થાને ત્યાગ કરીને અણગારાવસ્થાને પૂર્ણ રૂપે અથવા વિશુદ્ધરૂપે પ્રાપ્ત કરી શક્તિ નથી મસ્તકના કેશેનું લુચન કરવું તેનું નામ દ્રથની અપેક્ષાએ મુડિત થવું સમજવું અને કપાય આદિ નો પરિત્યાગક એટલે ભાવની અપેક્ષાએ મુઠિત થવું કેવલ શબ્દ પરિપૂર્ણ અધવા વિવૃદ્ધના અર્ધામાં અહી વપરાય છે. પ્રવ્રજ્યા લઇને મુનિ પર્યાયને ધાર કરવી તેનું નામ અને गारिता 2. "नो प्रयजति" मा सूत्राशी भय Hit RHY नयी," सेवा थाय छे. र प्रभारी "णो फेल भयाममाया " य भी कर આરંભ અને પરિગ્રહરૂપ બને ધાનેને જ્ઞ પરિઝથી જ નર્ધા અને
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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