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________________ ५८0 - - सूत्रकृतास वा जिनसमूहे साधुमुद्दिश्य पञ्चमहावतानां श्रावकोदेशेन पश्चाऽणुव्रतानामात्र. पानां संवराणां पूर्ण श्रामण्ये विरतेश्च निर्जरामोक्षाणां चोपदेशं ददातीति मावः॥६॥ मूलम्-सीओदगं सेवउँ बीयकायं आहाय कम्मं तह इस्थियाओ। एंगंतचारिस्सिह अम्हधम्मे, तवस्तिणो णाभिसमेइ पावं ॥७॥ - छाया--शीतोदकं सेवता वीज़कायम् आधाकर्म तथा स्त्रियः । एकान्तचारिण इहाऽस्मद्धर्मे तपस्विनो नाभिसमेति पापम् ॥७॥ . आन्वयार्थ:--भो आईक ! (एगंत चारिस्सिइ) एकान्तचारिण इह (तवस्सिणो) तपस्विनः-तपश्चरणशीलस्य (अम्ह धम्मे) अस्मद्धर्मे 'सीओदर्ग' शीतो. तथा श्रावकों के लिए पांच अणुव्रतों का और आश्रव, संवर विरति, निर्जरा एवं मोक्ष का उपदेश करते हैं ।६॥ ... 'सीओदगं सेवउ बीयकाय' इत्यादि । शब्दार्थ--गोशालक कहते हैं-हे आईक ! 'एगंतचारिस्सिहएकान्तचारिण इह' जो पुरुष एकान्त चारी और तवस्सिणो-तपस्विन!' तपस्वी है 'अम्हधम्मे-अस्मद्ध' वह हमारे धर्म के अनुसार 'सीओदगं-शीतोदकं' शीतल जलका 'बीयकायं-बीजझाया बीजकायका "आहाय कम्म-आधार्मिकम् आर्धाकर्मी आहार का और 'हथियाओ -स्त्रिया' स्त्रियों को 'सेवउ-सेवता' सेवन करते तो भी 'पावं-पापम्' पाप 'नाभिसमेह-नाभिसमेति' नहीं लगता है ।गा ०७|| __ अन्वयार्थ-गोशालक कहता है-हे आक! जो पुरुष एकान्त चारी और तपस्वी है, वह हमारे धर्म के अनुसार शीतजल का, योजશ્રાવકો માટે પાંચ અણુવ્રતો અને આસ્રવ, સંવર, વિરતિ, નિર્જરા અને મક્ષને ઉપદેશ આપે છે. પગાદા 'सीओदग सेवउ बीयकाय' त्याह शहाथ- शा छे.--3 भाद्र! 'एगंतचरिस्सिह-एकान्तधारिण इह' २ ५३५ तयारी भने 'तवस्त्रिणो-तपस्विनः' तपस्वी छे. 'अम्ह धम्मे-अस्मद्धमें' ते ममा। धर्म प्रमाणे 'सीओदग-शीतोदकम्' 1 पाणी तुं 'बीयकायं-बीजकायम्' भी आयतुं 'अहाय कम्म-आधार्मिकम्' माथा 6 माहातुं भने 'इत्थियाओ-स्त्रियः' लियोन 'सेवउ-सेवता' सेवन रे छ, ते ५५ 'पाव- पापम्' ५५५ 'नाभिसमेइ-नाभिसमेति' गतु नथा ॥७॥ અન્વયાર્થ-ગોશાલક આદ્રકમુનિને કહે છે કે--હે આદ્રક! જે પુરૂષ એકાન્તચારી અને તપસ્વી છે. તેઓ આપણું ધર્મ પ્રમાણે ઠંડા પાણીનું
SR No.009306
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages791
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size45 MB
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