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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु.अ. ६ उ.१ भंगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ५७१ __ अन्ध्यार्थः-(से पथू) स प्रभुीरः (सराइमत्तं इत्थि वारिया) सरात्रिभक्तां स्त्रियं वारयित्वा-रात्रिभोजनं स्त्रीसेवनं च परित्यज्य (दुक्खखयट्ठयाए) दुःखक्षयार्थ-कर्मनाशाय (उपहाणवं उपधानवान-तीवननिष्ठप्रदेशः (आरं परं च लोग विदित्ता) आरं च परं च लोकं विदित्वा इह लोकं परलोकं तत्कारणं च नात्या (सव्वचारं सव्वं वारिय) सर्ववारं सर्व वारितवान्-सर्वमेतत् बहुशो निवारितवान् पुन: पुनः प्राणातिपातादिनिषेधं स्वतोऽनुष्ठाय परांश्च स्थापितवान् इति ॥२८॥ - __टीका-'से पधू' स पभुभगवान तीर्थकरः 'सराइभत्तं इत्थी वारिया' सरात्रिभक्तां स्त्रियं वारयित्वा, रात्रौ भक्तं भोजन मितिरात्रिभक्तम् , रात्रिभोजन 'से वारिया' इत्यादि। शनार्थ-'से पभू-ल प्रभु' वह प्रभु महावीर स्वामी 'सराइभत्तं इत्थी वारिया-सरात्रिभक्तां स्त्रियं वारयित्वा' रात्रि भोजन और स्त्रीको छोड करके 'दुक्खखयशाए-दुःखक्ष शार्थम्' दुःख के क्ष के लिये 'उथहाणवं-उपधानवान्' तपस्या में प्रवृत्त थे 'आरं परं च लोगं विदित्ताआरं परं च लोकं ज्ञात्वा' इमलोक तथा परलोक को जानकर 'सवारं सव्वं वारिय-सर्ववारं सर्व बारितवान्' भगवानने सब प्रकार के पापको छोड दिया था ॥२८॥ ___ अन्वयार्थ-प्रभु महावीर ने रात्रिभोजन के साथ स्त्री सेवन को भी त्याग कर दुःखो का क्षय करने के लिए, तपश्चर्या से युक्त होकर इहलोक परलोक और उनके कारणों को विदित करके सब पापों को पूर्ण रूप से त्याग दिया था ॥२८॥ " से वारिया " त्या साथ-'से पभू स प्रभुः' प्रभु मडावीर स्वामी 'सराइभत्तं इत्थी वारिया-सरात्रिभक्ता खियं वारयित्वा' शनिवा- मने खीर छोडीन 'दुक्खखयट्टयाए-दुःखक्ष यार्थम्' मना क्षमाट ‘उवहाणवं-उपधानवान्' त५. स्यामा प्रवृत्त 'भारं पर च लोग विदित्ता-गार पर च लोकं ज्ञात्वा' मा खोर मन ५२४ नपान 'सव्ववारं सव्वं वारिय-सर्ववार सर्व वारितवान्' भावाने ५५ प्रा२ना ५२ छ। दीया ॥ ॥ १८ ॥ સૂવાર્થ–મહાવીર પ્રભુએ રાત્રિભેજનની સાથે સેવનને પણ સર્વથા परित्याग ४ ता. माना ( ना) "क्षय ४२वाने भाट, तभरी धार તપસ્યા કરી હતી. તેમણે આ લેક, પરલેક અને તેમનાં કારણેને જાણ લઈને સમસ્ત પાપને સર્વથા ત્યાગ કર્યો હતે. ૨૮
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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