SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ܝܕܝܐ सूत्रकृताङ्गसूत्रे सूळस्-आसंदियं च नेवसुतं पाउलाई संकमाए | अद्वै पुर्त्तदोहलट्टाए अणप्पा हेवति दांसा वा ॥१५॥ छाया - आसन्दिकां च नवसूत्रां पादुकाः संक्रमणार्थाय । अथ पुत्रोदार्थाय आज्ञा भवन्ति दासा इव ॥ १५ ॥ अन्वयार्थः -- (नवसु च आसंदियं) नवसूत्रामादिकां च-नवसूत्रनिर्मितां चिक (मट्ठा) संक्रमणार्थाय (पाउल्लाइ ) पादुकाः- काष्ठपादुकाः (अदु) अथ (gatear) पुत्रदार्था (दासा वा) दासा इव (आप्पा) आइताः (हवंति ) भवन्ति - स्त्री वशीकृताः साधवः स्त्रियाः दासा इव भवन्तीति ॥ १५ ॥ शब्दार्थ- 'नवसुत्त' 'च आसंदियं नवसूत्राम् आसंदिकाम्' नये सूतों से बनी हुई सोने बैठने के लिये एक मंचिया लाओ 'संक्रमट्टाए- संक मणार्थाय' घूमने के लिये 'पाउलाई पादुका:' काष्ठ की पादुकाएं लाओ 'अनु- अर्थ' और 'पुत्तदो हलट्ठाए- पुत्रदोदार्थाय ' मेरे गर्भस्थित पुत्र के दोहद की पूर्ति के लिये अमुक अमुक वस्तु लाओ इस प्रकार साधु 'दासा वा दासा इवे'' दासके जैसे 'आणप्पा - आज्ञता" आज्ञाकारी 'हवेति भवन्ति' होते हैं ||१५|| अन्वयार्थ -- नवीन सूत से बनी मंचिया लाओ, चलने फिरने के : लिये खडाउँ लाओ। पुत्रदोहद गर्भस्थित पुत्र की इच्छा को पूर्ण करने के लिये अमुक अमुक वस्तुएं लाओ । इस प्रकार स्त्रियां अपने वश में हुए उन साधुओं को दास के समान आज्ञा देती है ॥ १५ ॥ * शब्दार्थ' - 'नवसुत्तं च- आसंदिय' - नवसूत्राम् आसंदिकाम्' सुवा मेसवाने भाटे नवा होराथी (पाटीथी) मनावे मे! पण सावा तथा 'संक्रमट्टाए - संक्रमणार्थाय ३२वा भाटे 'पाउल्लाई' - पादुका ः ' साउडानी पावडीओ ( याभडी ) सावी खाये। 'अदु-अथ' मने 'पुतोहलट्ठाए- पुत्र दोहदार्थाय गर्भावस्थाना डोहनीपूर्ति भाटे सभु अभु वस्तु तावी भाये। खेभ ते साधु थे। 'दासा वा दाख इव' हास अर्थात् सेउनी भाइ 'आणप्पा - आज्ञप्ताः' आज्ञांति 'हवंति - भवन्ति' थाय छे ॥ १५ ॥ સૂત્રા—આપથે શયન કરવા માટે નવી પાટી ભરેલી ઢાયણી (નાના ઢલિયે) લાવી દો. મારે માટે લાકડાની પાવડીએ લ વી આપે. ગસ્થ પુત્રદોહદ પૂર્ણ કરવાને માટે વિવિધ વસ્તુએની પણ તે માગણી કરે છે. આ પ્રકારે પાતાને વશ થયેલા તે સંયમભ્રષ્ટ સાધુને દાસ જેવા ગણીને સ્ત્રીઓ વિવિધ આજ્ઞાએ કરે છે. પ્
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy