SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 609
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारचिन्तामणि -टीका अध्य. १ उ. ३ . २ श्रद्धास्वरूपम् ૪૮ जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् स उत्कर्षतो देशोनार्द्धपुद्गलपरावर्त्त स्थित्वा पुनः सम्यक्त्वं माप्स्यति, स सादिमिथ्यादृष्टिर्भवति । यथाप्रवृत्तिकरणम् agraat freeटेर्जीवस्य परिणामरूपाध्यवसायः पूर्वं जघन्यशुभ परिणाममङ्गीकृत्य परः परः शुभपरिणामः परिणामविशेष इत्युच्यते । स एव परिणामविशेषो 'यथाप्रवृत्तिकरण - मित्युच्यते । terrवृत्तिकरण- मित्यस्य शब्दार्थरत्वेवम् - यथा येन अनादिसंसिद्धप्रकारेण प्रवृत्तिर्यस्य तत् यथामवृत्ति, क्रियते कर्मक्षपणमनेनेति करणं जीवस्य शुभपरिणामः यथाप्रवृत्ति च तत्करणं च यथाप्रवृत्तिकरणं कर्मक्षपणकारणस्या , बाद में अनन्तानुबन्धो कपाय के उदय से फिर मिथ्यात्व आ गया किन्तु वह मिथ्यात्व जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट देशोन अर्द्धपुद्रलपरावर्तन तक रहता है वह जीव सादिमिध्यादृष्टि है | यथाप्रवृत्तिकरण इस प्रकार दोनों प्रकार के मिथ्यादृष्टि जीवों का अध्यवसाय पहले के जघन्य शुभ परिणाम से लेकर उत्तरोत्तर बढते हुए शुभ परिणाम, परिणामविशेष कहलाता है । उसी परिणामविशेष को 'यथामत्तिकरण' कहते हैं । 'यथाप्रवृत्तिकरण' का शब्दार्थ इस प्रकार कालीनरूप से जिस की प्रवृत्ति हो वह यथामवृत्ति क्षय किया जाता है, जीव के उस शुभ परिणाम को है- 'यथा' अर्थात् अनादिकहलाता है । जिस से कर्मों का 'करण' कहते हैं । यथाप्रवृत्ति અનન્તાનુબંધી કષાયના ઉદ્દયથી ફરીથી મિથ્યાત્વ આવી ગયું. પણ તે મિથ્યાત્વ જઘન્ય અન્તર્મુહૂત સુધી અને ઉત્કૃષ્ટ દેશેાન અદ્ધ પુદ્ગલપરાવર્ત્તન સુધી રહે છે. તે જીવ સાદિમિથ્યાષ્ટિ છે. યથાપ્રવૃત્તિકરણ~~ આ પ્રકારના બન્ને મિથ્યાષ્ટિ જીવાના અધ્યવસાય પહેલાના જઘન્ય શુભ પિ લુામથી લઈ ને ઉત્તઉરેત્તર વધતા શુભ પરિણામ, પરિણામવશેષ કહેવાય છે, તે પરિણામ विशेषने यथावृत्तिकरण हे छे. "यथाप्रवृतिकरण" ने। शब्दार्थ या अरे हे 'यथा' अर्थात् मनाहि असीनरूपथी लेनी 'प्रवृत्ति' होय ते 'यथाप्रवृत्ति' उपाय छे. नेनाधी भनि क्षय करवामां आवे छे, ना ते शुभ परिणामने "करण" उडे छे.
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy