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________________ ३८ योगकल्पलता रहस्यं सर्वयोगानामतिगूढं प्रकाशते। जप्यमानात्तु नित्यं हि नमस्कारान्न संशयः।।६।। नमस्कार मन्त्र का निरन्तर जप करने से सभी योगों का अतिगूढ रहस्य प्रकाशित होता है इसमें कोई सन्देह नहीं।।६।। सर्वेषां लययोगानां मन्त्रेऽस्मिन् प्रकृतिर्मता। तस्माल्लयस्य प्राप्तिस्तु नमस्कारान्न संशयः।।७।। सभी लयों का योग इस मन्त्र में होने से इसे प्रकृति कहा गया है अतः लय की प्राप्ति निस्सन्देह नमस्कार से होती है।।७।। वीर्यं तन्नान्यमन्त्रेषु पुरुषार्थप्रसाधकम्। तस्मान्मोक्षफलप्राप्तिनमस्कारान्न संशयः।।८।। पुरुषार्थ को साधने का सामर्थ्य अन्य मन्त्रों में नहीं है, अतः नमस्कार महामन्त्र से अवश्य ही मोक्ष की प्राप्ति होती है इसमें कोई संदेह नहीं।।८।। अर्हतां प्रणिधानेन तीर्थकृन्नामकर्मणः। स्याद्वन्धो ननु भव्यानां नमस्कारान्न संशयः।।९।। अर्हतों के तीर्थकृत् नाम कर्म के प्रणिधान से सचमुच नमस्कार महामंत्र से भव्यों का बंध होता है इसमें कोई संदेह नहीं।।९।। करोति साधकः सद्यः स्वस्यैव वशगं जगत्। धारणासम्प्रयोगेन नमस्कारान्न संशयः।।१०।। नमस्कार मन्त्र से धारणा और सम्प्रयोग के द्वारा साधक तत्क्षण ही जगत् को अपने वश में कर लेता है यह ध्रुव सत्य है इसमें कोई संदेह नहीं।।१०।। तत्त्वविज्ञानमात्रेण चित्तशुध्दिः प्रजायते। जीवन्मुक्तिः क्रमात्तेन नमस्कारान्न संशयः।।११।। केवल तत्त्वज्ञान से चित्त की शुद्धी होती है किन्तु नमस्कार महामन्त्र से क्रमशः जीवनमुक्ति मिलती है इसमें कोई संदेह नहीं।।११।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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