SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ।। नमस्कारकीर्तनम्। नत्वा वीरं गुरुं भक्त्या जननीं जनकं तथा । प्रमोदाद्रच्यते रम्यं नमस्कारस्य कीर्तनम् ॥ १ ॥ भक्तिपूर्वक भगवान् महावीर, गुरु एवं माता-पिता को प्रणाम करके प्रसन्नता पूर्वक सुन्दर नमस्कार कीर्तन की रचना करता हूँ । । १ ॥ यदा तत्त्वत्रयीरूपं ज्ञातुं वाञ्छाऽभिजायते। तदा प्रकाशते तत्तु नमस्कारान्न संशयः।।२। जब तत्त्वत्रयी को जानने की इच्छा उत्पन्न होती है तब वह तत्त्वत्रयी नमस्कार से ही प्रकाशित होते हैं इसमें कोई संदेह नहीं । । २ । । साधनाक्रमविज्ञानं हृदि स्फुरति तत्त्वतः । शुद्धचित्तस्य शीघ्रं हि नमस्कारान्न संशयः । । ३ ॥ शुद्ध चित्तवालों के हृदय में साधना के समय में तत्त्व से विशिष्ट ज्ञान नमस्कार महामन्त्र से ही प्रस्फुरित होता है इसमें कोई संदेह नहीं || ३ || सविस्तरं श्रुतज्ञानमनायासेन प्राप्यते । अभेदाद्गुरुतत्त्वस्य नमस्कारान्न संशयः ।।४।। गुरु तत्त्व के साथ अभेद होने से विस्तृत श्रुतज्ञान नमस्कार महामन्त्र द्वारा अनायास ही प्राप्त होता है इसमें कोई संदेह नहीं ॥ ४ ॥ आगमेषु च सर्वेषु सद्यः प्रत्ययकारकः । नास्ति नास्ति परो मन्त्रो नमस्कारान्न संशयः ॥ ५ ॥ सभी आगमों में नमस्कार मन्त्र से अधिक विश्वास करने लायक मन्त्र कोई दूसरा नहीं है इसमें कोई सन्देह नहीं ॥ ५ ॥
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy