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________________ नमस्कारकीर्तनम् मन्त्रस्मरणमात्रेण सर्वे भव्यमनोरथाः । सिद्ध्यन्ति त्वरितं लोके नमस्कारान्न संशयः । । १२।। इस लोक में मन्त्र के स्मरणमात्र से सभी भव्य मनोरथों की सिद्धि शीघ्र ही निश्चित रूप से नमस्कार से ही होता है इसमें कोई संदेह नहीं । । १२॥ प्रगाढं परमानन्दं प्राप्नुवन्ति मुमुक्षवः । सवीर्यध्यानयोगेन नमस्कारान्न संशयः ॥१३॥ सवीर्य ध्यानयोग से मुमुक्षुओं को प्रगाढ (अलौकिक ) आनन्द की प्राप्त नमस्कार से होता है इसमें कोई संदेह नहीं । । १३ ।। ३९ तत्त्वतो मोक्षदं ज्ञात्वा स्वरूपं परमेष्ठिनाम् । निःस्पृहो जायते भव्यो नमस्कारान्न संशयः । । १४॥ नमस्कार मंत्र से परमेष्ठियों का मोक्षप्रद स्वरूप तात्त्विक रूप से जानकर भव्य आत्मा निःस्पृह हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं । ।१४।। महामोहविनाशश्च माङ्गल्यानां परम्परा । विध्वंसः सर्वपापानां नमस्कारान्न संशयः ।। १५ ।। नमस्कार महामन्त्र से सभी महामोह का नाश होता है, शुभपरम्परा का प्रारम्भ होता है और सभी पापों का नाश होता है इसमें कोई संदेह नहीं । । १५ ।। तत्त्वबोधो विवेकश्च जायते शुद्धचेतसाम्। सर्वद्वन्द्वविनाशोऽपि नमस्कारान्न संशयः ।। १६ ।। नमस्कार महामन्त्र से शुद्धचित्तवाले को विवेक और तत्त्वबोध की प्राप्ति होती है साथ ही सभी द्वन्द्वों का नाश भी होता है इसमें कोई संदेह नहीं ।। १६ ।। विनाशो विषयादीनां स्वात्मन्येव लयस्तथा । स्वप्रकाशसुखप्राप्तिर्नमस्कारान्न संशयः।।१७।। नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से विषयादियों का नाश होकर अपनी आत्मा में लय हो जाता है तथा साधक को स्वप्रकाशरूप सुख की प्राप्ति होती है इसमें कोई संदेह नहीं।।१७।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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