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________________ नमस्कारस्तवः १५ सदाचारप्रदं मन्त्रं ब्रह्मज्ञानप्रकाशकम्। सर्वविज्ञानपूर्णं तं नमस्कारं सदा स्मर।।३०॥ यह मन्त्र सदाचारों को देनेवाला ब्रह्मज्ञान को बतानेवाला सभी विज्ञानोंब का भाण्डार है, इसलिए सतत तू इस नमस्कार का स्मरण कर।।३०।। अधिकारिविभेदेन सर्वयोगप्रदर्शकम्। मैत्र्यादिभावयुक्तस्त्वं नमस्कारं सदा स्मर।।३१।। अधिकारी भेद (सम्प्रदाय भेद) से सभी योगों को दिखानेवाला मैत्री आदिभाव से युक्त यह मन्त्र है अतः सतत नमस्कार मन्त्र का तू ध्यान कर।।३१।। जपाद्विशुद्धप्राणैस्तु करोति सुभगोदयम्। सच्चिदानन्दरूपं तं नमस्कारं सदा स्मर।।३२।। प्राणायाम क्रिया से विशुद्ध होकर जप करने से यह सौभाग्य काअ उदय करता है अतः सत् रूप-ज्ञानरूप तथा आनन्दरूप उस नमस्कार मन्त्र का सदा ध्यान कर।।३२।। बाह्यान्तरविभेदेन सद्धर्मप्रतिपादकम्। मोक्षदूतं महामन्त्रं नमस्कारं सदा स्मर।।३३।। बाह्य और अन्तर के विभेद (ध्यान की वह अवस्था जिसमें मन और आत्मा का अभेद सम्बन्ध बनता है तथा शरीर की नश्वरता और आत्मतत्त्व से भिन्नता का ज्ञान होता है) से सत्य धर्म को प्रतिपादन करनेवाला मोक्ष का दूतरूप इस नमस्कार महामन्त्र का तू ध्यान कर।।३३।। सार्द्धत्रिवलयोपेतं सर्वचक्रविभेदकम्। कुण्डलिनीस्वरूपं तं नमस्कारं सदा स्मर।।३४।। साढेतीन वलयवाले; सभी चक्रों को भेदन करनेवाले कुण्डलिनी स्वरूप इस नमस्कार मन्त्र का तू सदा ध्यान कर।।३४।। मर्मस्थानेषु सर्वेषु त्रिकोणेषु च सन्धिषु। कृत्वा न्यासं हि चित्तस्थं नमस्कारं सदा स्मर।।३५।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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