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________________ योगकल्पलता सभी मर्मस्थानों, सन्धियों एवं त्रिकोणों में स्थापित करके चित्त में रहे हुए इस नमस्कार मन्त्र का सदा ध्यान कर।।३५।। परित्यजेतरत्सर्वं कुम्भकेन निरन्तरम्। शक्तिविस्तारणे ध्याने नमस्कारं सदा स्मर।।३६।। सभी बातों की उपेक्षा करते हुए कुंभक (प्राणवायु को रोकना) से शक्ति का विस्तार करके ध्यान में सदा नमस्कार का ध्यान कर-अर्थात् पूरक-कुंभक रेचक पद्धतिद्वारा प्राणायाम करके ध्यान में तू नमस्कार का स्मरण कर।।३६।। अभ्यस्य धारणाः सर्वाः पिण्डस्थध्यानदर्शिताः। विस्तार्य सर्वशक्तिं च नमस्कारं सदा स्मर।।३७।। शरीर में बताए गये सभी स्थानों का ध्यान करके सभी धारणाओं (ध्येयस्थानों) का अभ्यास करके एवं सभी शक्तियों (सर्वाङ्ग ध्यान सामर्थ्य) का विस्तार करके तू नमस्कार का सदा ध्यान कर।।३७।। सङ्क्षयात्पुण्यपापानां भवव्याधिविनाशकम्। सर्वज्ञभाषितं मन्त्रं नमस्कारं सदा स्मर।।३८।। पुण्य-पाप सभी कर्मों का क्षय करके भवरूप व्याधि को नाश करनेवाला, सर्वज्ञद्वारा उपदिष्ट नमस्कार मन्त्र का सदा स्मरण कर।।३८।। ग्रन्थिभेदक्रमेणैव परशक्तिविभेदनात्। त्रैलोक्यपूरणं कृत्वा नमस्कारं सदा स्मर।।३९।। क्रम से ग्रन्थि के भेदन से कर्मशक्ति (कर्म गाठ) का भेदन होता है त्रैलोक्य पूरण (केवली समुद्धात में) करके सदा नमस्कार कर।।३९।। पञ्चवर्णमयं मन्त्रं मन्त्रं नवपदात्मकम्। अष्टदले महापद्मे नमस्कारं सदा स्मर।।४०।। बडे अष्टदल कमल पर पाँच वर्णों से युक्त नवपदवाले इस नमस्कार का तू सदा ध्यान कर।।४०।। चन्द्रबिम्बगतं मन्त्रं मन्त्रं वा रविसंस्थितम्। अग्निज्वालासमाक्रान्तं नमस्कारं सदा स्मर।।४१।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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