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________________ १४ योगकल्पलता पररूपानुसन्धानात्परमानन्ददायकम्। सारात्सारतरं मन्त्रं नमस्कारं सदा स्मर।।२४।। पररूप के अनुसन्धान से परमानन्द को देनेवाला अन्य सार से सारतर (श्रेष्ठतर) इस नमस्कार मन्त्र का सदा स्मरण कर।।२४।। मोक्षमार्गे प्रवृत्तानां भावमङ्गलमुत्तमम्। परीषहोपसर्गेषु नमस्कारं सदा स्मर।।२५।। परिषह और उपसर्गों के समय में, मोक्षमार्ग की ओर बढनेवालों (मुमुक्षुओं) की रूचि बढाने के लिये उत्तम भावमंगलरूप नमस्कार मन्त्र का ध्यान कर।।२५।। असङ्ख्ययोगमार्गाणां सारभूतं सनातनम्। सर्वनयात्मकं मन्त्रं नमस्कारं सदा स्मर।।२६।। योगमार्ग असंख्य हैं उसमें यह मन्त्र सनातन और सारभूत एवं सभी स्वरूप है, ऐसे नमस्कार का सदा ध्यान कर।।२६।। सम्यग्ज्ञानप्रदं मन्त्रं मिथ्यात्वविषनाशनम्। कैवल्यदायकं साक्षान्नमस्कारं सदा स्मर।।२७।। __ मिथ्यात्व को दूर करनेवाले, साक्षात् केवलज्ञान एवं सम्यग्ज्ञान को देनेवाले नमस्कार मन्त्र का सतत ध्यान कर।।२७।। तं परमार्थसारं हि दृष्टिरागनिवारकम्। सत्त्ववृद्धिकरं मन्त्रं नमस्कारं सदा स्मर।।२८।। दृष्टि राग का निवारक मोक्षमार्ग का सार तथा सत्त्व को बढानेवाले इस नमस्कार मन्त्र का सतत ध्यान कर।।२८।। महापुण्योदयाद्यस्मिन् वाञ्छाऽभिजायते नृणाम्। सम्प्राप्य भाग्ययोगात्तं नमस्कारं सदा स्मर।।२९।। महान् पुण्य के उदय से मनुष्यों की अभिरूचि इस मन्त्र में होती है अतः भाग्ययोग से उसे प्राप्त करके नमस्कार का ध्यान कर।।२९।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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