SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् १२५ वनस्पतिकाय ५ ए पांच मांहि च्यारि प्राण हुई। एक स्पर्शनेंद्रिय १ बीजउं कायबल २ त्रीजउ सासऊसास ३ चउथळ आऊखउं ४ ए च्यारि प्राण हुई। बेंद्रियमांहि स्पर्शनेंद्रिय १ रसनेंद्रिय २ कायबल ३ वचनबल ४ श्वासोच्छ्वास ५ आऊखउं ६ ए छ प्राण हुई। तेंद्रियमांहि नासिकानउं इंद्रिय अधिकउं तेह भणी सात प्राण हुई। चउरिद्रियमांहि आंखिनउं इंद्रिय अधिकउं तेह भणी आठ प्राण हुई। अंसंज्ञिया पंचेंद्रियहुई काननउं इंद्रिय अधिकउं तेह भणी नव प्राण हुई। संज्ञिया पंचेंद्रियहुई मनोबल सहित दस प्राण हुई। मनुष्य,नारकी देव ए त्रिहुहुई पुण ए १० प्राण हुई। इम तेरे स्थानके प्राण १० विचारियां। हवइ तेरे स्थानके जघन्य, मध्यम अनइ उत्कृष्टउं आऊखउं विचारीइ छइ। पृथ्वीकायमांहि जघन्य आऊखउं अंतर्महर्त: उत्कष्टउं आऊखउं बावीस वर्षसहस्र २२0001 अप्कायमांहि जघन्य आऊखउं अंतर्मुहूर्तजि; उत्कृष्टउं सात वर्षसहस्र ७०००। तेअ(उ)कायमांहि जघन्य अंतर्मुहूर्त; उत्कृष्टउं त्रिणिजि दीहाडा। वाउकायमांहि जघन्य अंतर्मुहूर्त आऊखउं; उत्कृष्टउं त्रिणि ३ वर्षसहस्र (३०००)। वनस्पतिकायहुई जघन्य अंतर्मुहूर्त आयु; उत्कृष्टउं १० दश वर्षसहस्र (१००००)। बेंद्रियमाहि जघन्य अंतर्मुहूर्त आयु; उत्कृष्टउं १२ बार वरस। द्रियहुई जघन्य अंतमुहूर्त; उत्कृष्टउं इगुणपंचास ४९ दीहाडा आयु हुइ। चउरिद्रियमाहि जघन्य अंतमुहूर्तउ; उत्कृष्ट छ ६ मास। असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियमाहि जघन्य अंतमुहूर्त आयु; उत्कृष्टउं एक पूर्व कोडि १ सत्तरि कोडि नाला प (नव लाख) छपन कोडि सहस्र एतले वरसे एक पूर्व हुइ। संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियहुई जघन्य अंतर्मुहूर्त आयु; उत्कृष्टउं ३ पल्योपम। मनुष्यहुई जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्टउं ३ पल्योपम। नारकीहुई जघन्य १० सहस्र वर्ष; उत्कृष्टउं ३३ सागरोपम। देवहुई जघन्य १० वर्ष सहस्र ; उत्कृष्टउं आऊखउं ३३ सागरोपम। एवं तेरे थानके आऊखउं विचारिउं। हिव केही गतिना आव्या पृथ्वीकायादिक १३ हुई ते वात विचारिइ छ।। पृथ्वीकाय १ अप्काय २ वनस्पतिकाय ३ ए त्रिणि तिर्यंचगतिमाहितउ, मनुष्यगतिमाहितउ, देवगति माहितउ आव्या हता हई। जेह भणी सौधर्म, ईशान लगइ देव रत्न १ वावि २ कल्पद्रुम ३ ए त्रिणिहुंनइमाहिं मरी अनुक्रमिइं पृथ्वीकाय १ अप्काय २ वनस्पतिकायमांहि ३ ऊपजई। तेउकाय, वाउकाय अनइ बेंद्रिय, त्रंद्रिय, चरिद्रिय, असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियमांहि बिहु गतिजिना आव्या हुई। एक तिर्यंचगति १ अनइ बीजी मनुष्यगति २ ए बिहुंजिना आव्या हुई। संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय अनइ मनुष्य ए बिहुं गतिथउ आव्या हुई २। नारकी अनइ देव तिर्यंचगति,१ मनुष्यगति २ ए बिहुं जथा (जिता) आव्या हुई। हव १३ थानकतउ मरी किहां जाइ? ते वात विचारीइ छइ। पृथ्वीकाय १ अप्काय २ वनस्पतिकाय ३ बेंद्रिय ४ चेंद्रिय ५ चउरिद्रिय ६ एतला मरी बिहजि गतिमांहि जाई- कि तिर्यंचमांहि कि मनष्यमांहिं। तेउकाय १ वाउकाय २ ए बि मरी तिर्यंचइजिमाहि जाइ। मनुष्य तथाई असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय, संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय चिहं गतिमांहि जाइं। मनुष्यइ चिहं गतिं जाई। पांचमी मोक्षगतिइं जाई। नारकी अनइ देव मरी तिर्यंच कि मनुष्यइजिमाहि; बीजी गति न जाइं। इम गति तेरे थानके १३ विचारी।। अथ ८४ लाख जीवाजोनिविचारः। योनि = जीवन उत्पत्तिस्थानक। जेहिं योनिना वर्ण-गंध-रस-स्पर्श सरीखा ते एक योनि जाणिवी। ते योनिना भेद पृथ्वीकायमांहि सात लाख, अप्कायमांहि ७ लाख, तेउकायमाहि सात लाख, वाउकायमांहि सात लाख, प्रत्येक वनस्पतिकायमांहि १० लाख, अनंतकायमांहि १४ लाख, एवं वनस्पतिकायमांहि २४ लाख, बेंद्रिय-द्रिय-चउरिंद्रियमांहि बि बि लाख, तिर्यंच पंचेंद्रिय असंज्ञिया अनइ संज्ञिया थई ४ च्यारि लाख, मनुष्यमांहि १४ लाख। नारकी अनइ देव मांहि ४-४ च्यारि-यारि लाख एवं ८४ लाख जीवयोनि कहीइं।
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy