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________________ १२४ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् धणी कहइ मूलगी छाल(?) पाडी फल खाईई' २। त्रीजउ कापोत लेश्यानउ धणी कहइ पडिडाल पाडी फल खाईई ३। चउथउं तेजो लेश्यानउ धणी कहइ 'कउरखां पाडी फल खाईई' ४। पांचमउ पद्मलेश्यानउ धणी कहइ फल पाडी खाईई ५। छटुंउ शुक्ललेश्या नउ धणी कहइ पडियां ति फल खाईई ६। ए छ लेश्या कहीइं। एह जि तेरे थानकि विचारीइ छइ। पृथ्वीकाय १ अप्काय २ वनस्पतिकाय ३मांहि च्यारि लेश्या हुई। कृष्ण १ नील २ कापोत ३ अनइ तेजोलेश्यानु धणी सौधर्मादिक देव मरी जेतीवारई एहमांहि ऊपजंइ तेतीवारइ थोडीसी वेला चउथी तेजोलेश्याइ ४ प्रा(पा)मीइ तेअ(उ)काय,वाउकाय, बेंद्रिय,द्रिय,चउरिंद्रिय, असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियमांहि ऊपजई तेतीवारई कृष्ण १ नील २ कापोत ३ लेश्या ए त्रिणि जि हुई। जेह भणी देव को तेजो लेश्यावंता एहमांहि न ऊपजई। संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय, संज्ञिया मनुष्य अनइ देवमांहि कृष्ण नीलादिक छइ हुई। असंज्ञिया मनुष्य अनइ नारकी हुई कृष्ण १ नील २ कापोत ३ ए त्रिणि जि हुई। लेश्या तेरे थानके विचारी।। अथ शरीरविचारः। शरीर पांच कहीइ छई। औदारिक १ वैक्रिय २ आहारक ३ तैजस ४ कार्मण ५ ए पांच शरीर कहीइं। पृथ्वीकाय १ अप्काय २ तेउकाय ३ वनस्पतिकाय ४ बेंद्रिय ५ चेंद्रिय ६ चउरिंद्रिय ७ असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियमांहि सदैव औदारिक १ तैजस २ कार्मण ३ एह जि त्रिणि सइर हुई। वाउकाय संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय मांहि औदारिक १ वैक्रिय २ तैजस ३ कार्मण ४ ए च्यारि सइर हुई। जेह भणी केतला वाउकाय अनइ संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियहुई वैक्रियकाय करवानी शक्ति हुइ। अपर्याप्त मनुष्यहुई औदारिक १ तैजस २ कार्मण ३ ए त्रिणिजि सइर हुई। संज्ञिया मनुष्यहुई औदारिक १ वैक्रिय २ तैजस ३ आहारक ४ कार्मण ५ ए पांचइ सइर हुई। नारकी अनइ देवहुई वैक्रिय १ तैजस २ कार्मण ३ ए त्रिणिजि सइर हुई। इम तेरे स्थानके शरीर विचारियां। अथ पर्याप्तिविचार लिखिइ छइ। पर्याप्ति छ कहीइं। जीवहुई भवांतरि ऊपजतां पहिलइ समइ आहारपर्याप्ति हुई। आहार पुद्गल लिइ तिवार पूठिई अंतर्मुहूर्तिइ शरीरपर्याप्ति हुइ। सयर' करइ तिवार पूठिइं इंद्रिय पर्याप्ति। इंद्रिय करेइ तिवार पूठिइं अंतर्मुहर्तइ आनप्राणपर्याप्ति = सासऊसास लेवानी शक्ति उपजइ। तिवार पूठिई अंतर्मुहूर्तइ वचननी शक्ति उपजइ। तिवार पूठिई अंतर्मुहूर्तई मनःपर्याप्ति = मनिई वस्तु चीतविवानी शक्ति उपजइं। एहजि छ पर्याप्ति तेरे स्थानकि विचारीइ छई। पृथ्वीकाय १ अप्काय २ तेउकाय ३ वाउकाय ४ वनस्पतिकाय ५ ए पांचमांहि च्यारि च्यारि पर्याप्ति हुई। यथा पहिली आहारपर्याप्ति १ बीजी शरीरपर्याप्ति २ त्रीजी इंद्रियपर्याप्ति ३ चउथी आनप्राणपर्याप्ति ४ ए च्यारि पर्याप्ति हुई। बेंद्रिय,द्रिय,चउरिंद्रिय, संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय मांहि च्यारि एहजि अनइ भाषापर्याप्ति पांचमी ए पांच। मनुष्य नारकी देवहुई छइ पर्याप्ति हुइ। पुण एतलुं विशेष देवहई भाषापर्याप्ति पांचमी अनइ छटी मनःपर्याप्ति ए बिह्वई समकाल एकई वारई, बीजा अनुक्रमिइं अंतर्मुहूर्तनइ आंतरइ पहिलं भाषापर्याप्ति पछइ मनःपर्याप्ति हुई। इम तेरे थानके पर्याप्ति विचारी। अथ प्राणविचारः। प्राण १० कहीइं। कान १ आंखि २ नासिका ३ जीभ ४ सयर ५ ए पांच इंद्रिय, पांच प्राण, त्रिणि बल मननउ बल १ वचननउं बल २ कायबल ३ त्रिणि प्राण ८, नवमउ प्राण सासऊसास ९ दसमउ प्राण आऊखउं १०। ए दस प्राण। __ हवई तेरे थानके दस प्राण विचारीइं छई। पृथ्वीकाय १ अप्काय २ तेअ(उ)काय ३ वाउकाय ४ १ = शरीर २ = स्पर्श
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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