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________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् काययोग हुइ १३। चऊदपूर्वधर संदेह ऊपनइ ते भांजवां भणी तीर्थंकर कंहई मोकलिवा हाथप्रमाण आहारक शरीर करइं ते करतां मिश्र हुइ १४। कीधा पूठिइं आहारक कहीइं १५। योग तेरे स्थानके विचारीइं च्छई। पृथ्वीकायमांहि ३ काययोग हुई। अंतराल गतिइं कार्मण १ ऊपजतां औदारिक मिश्र २ सइर नीपन्य पूठिई औदारिक कहीइं ३। इम अप्काय, तेउकाय, वनस्पतिकाय मांहि एह जि त्रिणी हुई। अंनइ वाउकायमांहि पांच योग कहीइं। त्रिणि पाछलाइ जि योग अनइ वैक्रिय करतां वैक्रियमिश्र ४ कीधा पूठिई वैक्रिय कहीइ ५। वाउकायहूई भवस्वभाविइं वैक्रिय करिवानी लब्धि हुइ। बेंद्रिया, तेंद्रिया, चरिद्रिया, असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय मांहि च्यारि च्यारि योग हुई। अंतराल गतिइं कार्मण १ उपजतां औदारिक मिश्र २ पछइ शरीर नीपना पठिइं औदारिक ३ भाषापर्याप्ति हई पठिई असत्यामषा भाषा ४। संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियहुई आहारक मिश्र १ आहारक २ ए बि योग न हुई, बीजा तेरइ योग हुई। जेह भणी अढई द्वीप बाहर केतलाइ पंचेंद्रिय तिर्यंचहुई वैक्रियशरीर करवानी लब्धी हुई, कर्मविशेषिइं। मनुष्यमांहि ४ मनोयोग ४ वचनयोग ७ काययोगरूप १५ योग हुई। असंज्ञिया मनुष्यहुइ त्रिणि योग हुइ। केहा केहा कार्मण १ औदारिक मिश्र २ योग हुई। शरीरपर्याप्ति हुइ पूठिइं औदारिकयोगइ त्रीजउ हुइ इम केतला आचार्य कहइं। नारकी अनइ देवमांहि ४ मनोयोग, ४ वचनयोग, कार्मण; वैक्रियमिश्र; वैक्रिय ३ काययोग एवं ११ योग हुई। इति तेरे थानके योग विचारिया।। अथ उपयोगविचारः। उपयोग १२ कहीइं। जीवहई एकको उपयोग सदैव हइ। उपयोगरहित जीव किवारई न हुई। ते ए मतिज्ञान १ श्रुतज्ञान २ अवधिज्ञान ३ मनःपर्यवज्ञान ४ केवलज्ञान ५ मिथ्यात्वी हुई मतिअज्ञान १ श्रुतअज्ञान २ अवधिअज्ञान ते विभंगज्ञान ३-६,७,८ चक्षुर्दर्शन ९ अचक्षुर्दर्शन १० अवधिदर्शन ११ केवलदर्शन १२। पृथ्वीकायहई मतिअज्ञान, अचक्षुर्दर्शन, श्रृतअज्ञान ३ ए त्रिणि उपयोग अव्यक्तज्ञानरूप हइं। अप्काय, तेउकाय,वाउकाय,वनस्पतिकायमांहि एह ज त्रिणि उपयोग हुई। बेंद्रिय, वेंद्रिय मांहि मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान अचक्षुर्दर्शन ३ ए त्रिणि उपयोग हुई। सिद्धांतना धणी सास्वादन गुणठाणानी वेलां ज्ञान मानइं तेह भणी मतिज्ञान, श्रुतज्ञान ए बिहु करी उपयोग हुई। कर्मग्रंथना धणी सास्वादनई तीणइ वेलाई १ डहुली ज्ञान भणी अज्ञानजि कहई। चउरिद्रिय, संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियमांहि मतिअज्ञान १ श्रुतअज्ञान २ चक्षुर्दर्शन ३ अचक्षुर्दर्शन ४ कर्मग्रंथनइ अभिप्राइयिई ए च्यारि उपयोग हुई। सिद्धांतनइं अभिप्राई सास्वादननी वेलाई मतिज्ञान श्रुतज्ञान गणींई तव ६ उपयोग हुई। संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियमांहि मतिअज्ञान १ श्रुतअज्ञान २ विभंगज्ञान ३ मतिज्ञान ४ श्रुतज्ञान ५ अवधिज्ञान ६ चक्षुर्दर्शन ७ अचक्षुर्दर्शन ८ अवधिदर्शन ९ ए नव उपयोग हुई। संज्ञिया मनुष्यनइं १२ उपयोग हुई। असंज्ञिया मनुष्यहुई मतिअज्ञान १ श्रुतअज्ञान २ अचक्षुर्दर्शन ३ ए त्रिणि उपयोग हुई। नारकी अनइं देव हुई नव नव उपयोग हुई। मतिअज्ञान १ श्रुतअज्ञान २ विभंगज्ञान ३ मतिज्ञान ४ श्रुतज्ञान ५ अवधिज्ञान ६ चक्षुर्दर्शन ७ अचक्षुर्दर्शन ८ अवधिदर्शन ९ ए नव उपयोग हुई। इमं तेरे थानके उपयोग विचारिया। अथ लेश्याविचारः। मनोवर्गणादि योगद्रव्यमांहि कृष्णलेश्यादि योग्य पुद्गलद्रव्य हुई। तेहनइ संयोगि जे आत्मा नइं रूडउ विरूउ परिणामं हुइ ते लेश्या कहीइ। जिम स्फुटिकरत्नहई जिसिउं पाछलि कालउ, नीलउ, रातउ, मूकीइ तेहवउ वर्ण थाई। ते लेश्या ६ कहीइं। कृष्ण लेश्या १ नील लेश्या २ कापोत लेश्या ३। गाढी विरूई हुइ। तेजो लेश्या ४ पद्म लेश्या ५ शुक्ल लेश्या ६ ए त्रिणि लेश्या रूडी कहीइं। जम्बू खादकनइं दृष्टांतिई ६ लेश्यानां स्वरूप जाणिवां। जिम ६ पुरुष कोएक अटवीमांहि जातां भूख्या थिया। जम्बू वृक्ष गाढउ फलिउ देखी कृष्ण लेश्यानउ धणी एक पुरुष कहीइ ‘मूल लगइ चीदी पाडी फल खाईई' १। बीजउ नील लेश्यानउ
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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