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________________ पुष्प सुगन्ध वर्ण अधिकाय, कल्पवृक्ष के ले हरषाय। आचार्यभक्ति-भावना साथ, पूजों मैं मनमथक्षय होय।। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्ति भावनायै पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। षट् रस कर नैवेद्य कराय, मोदक आदि महाशुभ भाय। आचार्यभक्ति-भावना सोय, पूजों रोग क्षधा क्षय होय।। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्ति भावनायै नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। दीप रतनमय ज्योति जगाय, कर्पूरादि बहुविध लाय। आचार्यभक्ति-भावना सोय, पूजों मैं मिथ्यातम खोय।। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्ति भावनायै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। दसधा धूप मिलाय सुगन्ध, अगनि मांहि खेळं अघबन्ध। __ आचार्यभक्ति-भावना सोय, पूजों मैं कम-क्षय होय।। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्ति भावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। श्रीफल लोग बदाम अनार, खारक पुंगीफल सुखकार। आचार्यभक्ति-भावना सोय, पूजों मैं शिवफलजिमि होय।। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्ति भावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा। जलचन्दन अक्षत सुमसार, चरु दीपक फल धूप सम्हार। आचार्यभक्ति-भावना सोय, पूजों मैं अर्घ नाश होय।। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 904
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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