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________________ 11. आचार्यभक्तिभावना पूजा चाल जोगीरासा छन्द द्वादस तप वृष दसविध, षडावश्य शुध भाई। पंचाचारज तीन गुप्ति मिल, गुण छत्तीस कहाई।। इनके धार अचारज सोई, इनकी भक्ति सुभावा। सो इहां थाप जजों मनवचतन, मेटन भव का दावा।। ॐ ह्रीं श्री आचार्यभक्तिभावना ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्तिभावना ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्तिभावना ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। (चौपाई छन्द) नीर पदमद्रह को ले सार, मणिमय झारी तें कर धार। आचार्यभक्ति-भावना सोय, पजों मन वच तन सोय।। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्ति भावनायै जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन अगर नीर घस लाय, शुभ पातर में धर उमगाय। आचार्यभक्ति-भावना सोय, मैं पूजों भव-दुखक्षय हाये।। ऊँ ह्रीं श्री आचार्यभक्ति भावनायै चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत उज्ज्व ल मोती जेम, सो मैं लेय धार कर प्रेम। आचार्यभक्ति-भावना सोय, पूजों मैं अक्षय-फल होय।। ॐ ह्रीं श्री आचार्यभक्ति भावनायै अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 903
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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