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________________ 8. साधुसमाधि भावना पूजा ___ दोहा जा विध मुनि को सुख बढ़े, साधु समाधि सुजान। सो मैं इत थापन करों, पूजों मन वच आन।। ॐ ह्रीं श्री साधुसमाधिभावना ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्री साधुसमाधिभावना ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्री साधुसमाधिभावना ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। (चौपाई छन्द) नीर निरमले गंगा तनो, सो मैं कनकझारि ले घनो। पूजों साधुसमाधी-भाव, ताफल मिटे कर्म को दाव।। ऊँ ह्रीं श्री साधुसमाधि-भावनायै जलम् निर्वपामीति स्वाहा। बावन चन्दन नीर घसाय, रतन-जडित झारी धर लाय। पूजों साधुसमाधी-भाव, ताफल भव आताप नशाय।। ऊँ ह्रीं श्री साधुसमाधि-भावनायै चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत उज्ज्वल मोती समा, सुभग रकेबी में धर रमा। पूजों साधुसमाधी-भाव, ताके फल अक्षयपद पाव।। ऊँ ह्रीं श्री साधुसमाधि-भावनायै अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। फूल भले सुरतरुके लाय, गूंथी माल भक्ति मन लाय। पूजों साधुसमाधी-भाव, ताफल मदननाश का पाव।। ॐ ह्रीं श्री साधुसमाधि-भावनायै पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। 889
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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