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________________ धूप दशधा गन्ध धारी, अग्निमधि जारों सही। उर हरष करले आप करमें, कर्मरिपु मारों सही।। तब होय शिवपद कर्म नाशे, तास यह विधि पाय है मैं जजों शुध तप भावना को, तीर्थपद की दाय है।। ऊँ ह्रीं श्री तपोभावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। ले लौंग खारक और श्रीफल, जान सुभग बदामजी। फिर जान पिस्ता आदि नीका, भला फल अभिराम जी।। ताफलै शिवफल होय निश्चल, और बहु कहा गाय है। मैं जजों शुध तप भावना को, तीर्थपद की दाय है।। ऊँ ह्रीं श्री तपोभावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा। जल गन्ध अक्षतफूल चरु ले, दीप धूप फला सही। कर अध्य आठों द्रव्य ले के, महाशुभफल की मही।। ताफलै अद्भत होय फल सो, कौन मुखतें गाय है। मैं जजों शुध तप भावना को, तीर्थपद की दाय है।। ऊँ ह्रीं श्री तपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। प्रत्येकायं (सोरठा छन्द) जो करना उपवास, एक दोय पख मास के। सो अनशन तप नाम, मैं पूजों जल आदिते।। ऊँ ह्रीं श्री अनशनतपोभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 885
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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