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________________ गीता छन्द भेद और अनेक हैं सो, सकल जिनधुनि में कहै। यहां अल्प से व्याख्यान मांही, कथन-प्रयोजनवान है।। उपयोग भेद अपार जानो, भेद को पावे सही। वश भक्ति द्रव्य मिलाय पूजों, ज्ञान केवल शिव मही।। ऊँ ह्रीं श्री ज्ञानोपयोग भावनायै महाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला दोहा ज्ञानाभ्यास सदा करे, मनवच काय लगाय। अन्तर कहुँ पावे नहीं, ज्ञानपयोग सु पाय।। ज्ञानपयोग निरन्तर ध्यावे, धरमध्यान में काल गमावे। ज्ञानाभ्यास तुल्य वृष नाहीं, सब धर्मन में यह अधिकाही।। ज्ञानाभ्यास तत्त्व बतलावे, ज्ञानाभ्यास ध्यान उपजावे। ज्ञानाभ्यास विराग बढ़ावे, ज्ञानाभ्यास मोक्ष उपजावे।। ज्ञानाभ्यास थकीजग-पूजा, ज्ञानाभ्यास थकी अघ धूजा। ज्ञानाभ्यास त्यागबुधि लावे, ज्ञानाभ्यास दोष सब ढावे।। ज्ञान गुणाकर ज्ञान वंधावे, ज्ञानाभ्यास मुक्ति परणावे। ज्ञान सकलसन्तनको प्यारा, ज्ञान सर्व जगमांहि उजारा।। ज्ञान सूर्य मिथ्यातम नासे, ज्ञानमेघ भवतप को फांसे। ज्ञान सकल संशय को खोवे, ज्ञान पापमल को सब धोवे।। ज्ञान क्रोधवन्ही को नीरा, ज्ञानतरु संजम पय वीरा। ज्ञानाभ्यास जगत का बन्धू, ज्ञानाभ्यास हरे दुख अन्धू।। 870
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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