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________________ 3. शीलव्रतेष्वनतिचार भावना पूजा (अडिल्ल छन्द) पचवाणते रहित, बाड़ नवजुत सही, सहस अठारह, अतीचार जामें नहीं। सर्व दोषतें रहित, शील सो भावना, ताके इह शुभ भाय, थापि सिर नावना।। ऊँ ह्रीं श्री सर्वदोषरहित शीलव्रतेष्वनतिचार भावना ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्री सर्वदोषरहित शीलव्रतेष्वनतिचार भावना ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री सर्वदोषरहित शीलव्रतेष्वनतिचार भावना ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। अडिल्ल पदम कुण्डको नीर सुनिर्मल लायके, झारी रतन भराय भक्ति मन भायके। शीलव्रतेषु भाव पूज हो सारजी, जनम जरामल जाय होय भव पारजी।। ॐ ह्रीं श्री शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन बावन पावनकारी सोहनो, निर्मल जल घसिलाय गन्ध मन मोहनो। शीलव्रतेषु भाव पूज भवि भाय जी, ता पूजाफल ताप जगतदख जायजी।। ऊँ ह्रीं श्री शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत उज्ज्वल, नखशिख शुद्ध बखानिये, सो ले उज्ज्वल, भाव भक्ति मन आनिये। शीलव्रतों मे, अनतिचार सुखदाय है, ताके पूजे दोषरहित पद पाय है।। ॐ ह्रीं श्री शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 855
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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