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________________ जयमाला विनयभावना बहु सुखदाई, विनयभाव विन भव भरमाई। धर्ममूल सब विनय है भैया, इमि लखि विनय पूजसिरनैया।। सोलहकारण में सरदारा, विनयभावना है अघजारा। विनय सकलको है सुख दैया, इमि लखि विनय पूज सिरनैया॥ विनयभाव गुरु का जो कीजे, तो शुभ होय पाप सब छीजे। विनय थकी सबने सुख पैया, इमि लखि विनय पूज सिरनैया।। विनय मानगिरिहरण प्रचण्डा, वज्रदण्ड सम है बलचण्डा। अविनय वन को बन्ही भैया, इमि लखि विनय पूज सिरनैया। जगमें विनयधर्म परधाना, विनय सर्व का राखे माना। विनय जिसाबल्लभनहिं भैया, इमि लखि विनय पूज सिरनैया।। तातें विनयभाव उर लावो, तो सब जग में महिमा पावो । सबमें विनय मुकतिगुन दैया, इमि लखि वि पूज सिरनैया। विनय सकल दोषन को खोवे, विनय मानमल को धो देवे। विनय ज्ञानतरु को पय पैया, इति लखि विनय पूज सिरनैया। कीजे विनय देव गुरु केरा, वृष की विनय हरे भवफेरा। विनय थकी जग विनय करैया, इमि लखि विनय पूज सिरनैया ॥ विनयभाव ताके उर जागे, जा उर कुटिलभाव नहिं लागे। विनयभाव सब दोष हरैया, इमि लखि विनय पूज सिरनैया। विनय आदि बहुतक गुणकारी, सबविध मंगल विनयउचारी। तातें और धनी क्या कहिया, इमि लखि विनय पूज सिरनैया। तीर्थंकर पद करन को, समरथ बहु सुखदाय। भवदधि तारण नावसी, विनयभावना भाय।। ऊँ ह्रीं श्री विनय भावनायै पूर्णाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 854
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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