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________________ खंडबिन ऊजरे, मुकतफल से कहे, तन्दुला थाल भर, आपने कर लहे। पूजिये विनयतें विनयभावन सही, तासतें खय फाल, होय जिनधुनि कही। ऊँ ह्रीं श्री विनयसम्पन्नता भावनायै अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। देवतरुके भले, फूल शुभ आनिये, माल बहु गूँज उर, भक्ति मन ठानिये। पूजिये विनयतें, विनयभावन सही, तासफल कामजुर, नाशहो इमि कही।। ऊँ ह्रीं श्री विनयसम्पन्नता भावनायै पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। भेलि षट्-रसा, नैवेद्य करनो भलो, भक्तिभावन किये, थाल में धर चलो। पूजिये विनयतें विनयभावन सही, भूख की वेदना नाश तासफल रही। ऊँ ह्रीं श्री विनयसम्पन्नता भावनायै नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। दीपमणि रतन के, ज्योति तम नाशजी, कनक भरि थाल ले, आरती भासजी। पूजिये विनयतें विनयभावन सही, नाश अज्ञान कर ज्ञान प्रगटे मही । ऊँ ह्रीं श्री विनयसम्पन्नता भावनायै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। धूपबन्ही विषें अगर को जारिये, गन्ध महा सुभग धर हाथ निज धारिये । पूजिये विनयतें विनयभावन सही, आठ कर्मदहन होय वानि जिन इमिकही।। ऊँ ह्रीं श्री विनयसम्पन्नता भावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। सुभग फल लाय नारेल बादाम जी, आदि खारक घने, महाशोभ ठामजी। पूजिये विनयतें विनयभावन सही, मोक्षफल सो करे, पूजिफल धुनि कही। ऊँ ह्रीं श्री विनयसम्पन्नता भावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा। 852
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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